मैं जो दीप जलाये चलता हूँ ,
आंधियों ! बुझा न देना उसको
मैं जो राह बनाये चलता हूँ,
तूफानों ! मिटा न देना उसको
मैं कितना लड़ा हूँ जिंदगी से,
वहारों ! बता न देना उसको
मैं मजबूरियों से दूर हूँ,
यादों ! सता न देना उसको,
मैं जो दीप जलाये चलता हूँ ,
आंधियों ! बुझा न देना उसको
मैं दुखों में उनके लिए हँसता हूँ,
आंसुओं ! रुला न देना उसको
मैं हार रोज आहें भरता हूँ,
ख्वाबों ! जता न देना उसको
मैं वेचैनी में जब देखना चाहूँ
घटाओं ! छुपा न देना उसको
मैं जो दीप जलाये चलता हूँ ,
आंधियों ! बुझा न देना उसको----------- रचना-राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
आंधियों ! बुझा न देना उसको
मैं जो राह बनाये चलता हूँ,
तूफानों ! मिटा न देना उसको
मैं कितना लड़ा हूँ जिंदगी से,
वहारों ! बता न देना उसको
मैं मजबूरियों से दूर हूँ,
यादों ! सता न देना उसको,
मैं जो दीप जलाये चलता हूँ ,
आंधियों ! बुझा न देना उसको
मैं दुखों में उनके लिए हँसता हूँ,
आंसुओं ! रुला न देना उसको
मैं हार रोज आहें भरता हूँ,
ख्वाबों ! जता न देना उसको
मैं वेचैनी में जब देखना चाहूँ
घटाओं ! छुपा न देना उसको
मैं जो दीप जलाये चलता हूँ ,
आंधियों ! बुझा न देना उसको----------- रचना-राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
4 comments:
आपकी सभी रचना बहुत अच्छी हैं..........
कुछ भी कह पाना मेरे लिए कठिन है कि किस पंक्ति की तारीफ करूँ मैं . हर एक पंक्ति एक से बढ़कर एक है इधर तो ...
बहुत खूब राजेंद्र भाई
सुन्दर भाव राजेंद्र जी
वाह बहुत सुंदर रचना
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