Sunday, May 15, 2011

मेरा बचपन

कब छोड़ चला वो बचपन मुझको,
मुझको कुछ भी याद नहीं
क्या मांगू अब किसे पुकारूँ,
सुनता कोई फरियाद नहीं
नादानी थी ऊपर मेरे,
चाँद की मै हठ कर बैठा
रूठ गया है बचपन मुझसे,
तब से खोया सा मै रहता
रिमझिम बादल बरस पड़ते थे,
नौका कागज की मैं खेता
तितली जुगनू खेल खिलाते,
थक हार कर तब मैं सोता
कब छोड़ चला वो बचपन मुझको,
मुझको कुछ भी याद नहीं
क्या मांगू अब किसे पुकारूँ,
सुनता कोई फरियाद नहीं ............
 रचना-राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

बिखर गया मेरा प्यार

बिखर गया सब प्यार मेरा,
बचपन का समेटा इन बाँहों में
कहाँ मै खोजूं उन तस्बीरों को,
बिरानी इन राहों में
बिखर गया सब प्यार मेरा,
बचपन का समेटा इन बाँहों में
पुरवाई ले गयी उस आंचल को,
घटा ने पानी बरसाया
सूरज ने दी तपति मुझको,
पतझड़ पेडो ने दिखलाया
बना हैं कैसे पल में मौसम,
बिरानी इन राहों में
बिखर गया सब प्यार मेरा,
बचपन का समेटा इन बाँहों में
भोरें आ कर उड़ भी गये,
फूल लगे सब मुरझाने
कहाँ मै खोजू किसे पुकारूँ,
बिरानी इन राहों में
बिखर गया सब प्यार मेरा,
बचपन का समेटा इन बाँहों में
कहाँ मै खोजूं उन तस्बीरों को,
बिरानी इन राहों में
बिखर गया सब प्यार मेरा,
बचपन का समेटा इन बाँहों में
चाँद लगा है मुझ पर हंसने,
तारे भी हैं देते ताने
क्या मैंने सोचा था तब,
क्या चला हूँ आज निभाने
बिखर गया सब प्यार मेरा,
बचपन का समेटा इन बाँहों में
कहाँ मै खोजूं उन तस्बीरों को,
बिरानी इन राहों में..............
 रचना-राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 



मैं जो दीप जलाये चलता हूँ

मैं जो दीप जलाये चलता हूँ ,
आंधियों ! बुझा न देना उसको
मैं जो राह बनाये चलता हूँ,
तूफानों ! मिटा न देना उसको
मैं कितना लड़ा हूँ जिंदगी से,
वहारों ! बता न देना उसको
मैं मजबूरियों से दूर हूँ,
यादों ! सता न देना उसको,
मैं जो दीप जलाये चलता हूँ ,
आंधियों ! बुझा न देना उसको
मैं दुखों में उनके लिए हँसता हूँ,
आंसुओं ! रुला न देना उसको
मैं हार रोज आहें भरता हूँ,
ख्वाबों ! जता न देना उसको
मैं वेचैनी में जब देखना चाहूँ
घटाओं ! छुपा न देना उसको
मैं जो दीप जलाये चलता हूँ ,
आंधियों ! बुझा न देना उसको-----------
 रचना-राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

मशरूम च्युं

मशरूम ( च्युं ) मशरूम प्राकृतिक रूप से उत्पन्न एक उपज है। पाहाडी क्षेत्रों में उगने वाले मशरूम।