मैं निकल पडा हूँ, घर की तलाश में !
जहाँ बूढी अम्मा,
एक नई पीढ़ी को,
गाथाएँ सुनती हुई मिले lमैं निकल पडा हूँ,
घर की तलाश में !
जहाँ पर गूँज रही हो किलकारियाँ,
और महकता हुआ आँगन मिले l
मैं निकल पडा हूँ,
घर की तलाश में !
जहाँ पर दीवारें गुनगुनाती हों,
मिट्टी के सौन्दर्य की कहानी,
और एहसास न हो चार दिवारी का l @ - रचना , सर्वाधिकार सुरक्षित, राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'