नेअथ बिगड़ जांदी,
आपणो की सुध नि च,
बीराणों तै चांदी ! बीराणों तै चांदी !
हंसदा खेलदा घरबार
छोड़ी आ जांदा,
हरीं भरीं पुंगडी पतवाडी,
शहर मा क्या पांदा !
माकन किरायाकू,
बिसैणु भी नि च,
कोठियों माँ धोणु भांडा,
बथैण भी कै मु च !
जग्गा जग्गा की ठोकरियोंन,
किस्मत जग्गैली,
चला पहाडू मेरा भाइयों,
1 comment:
बहुत सुंदर रचना
बहुत सुन्दर प्रस्तुति. हार्दिक बधाई.
Post a Comment