Saturday, August 4, 2012

अँधेरा

कदम खुद ही चलते है 

अँधेरे के निशा ढूंढ़ने !

रोक न पायें जब खुद को,

हम अँधेरे को क्यों  दोष दें !

उजाला हर किसी की ओढनी,   

हम अँधेरे को ही ओढलें !

उजालों ने थकाया हमें 

निगाहों ने लुटाया हमें !

क़दमों ने भी पकड़ी वही राह,

फिर रास्तों को क्यों हम दोष दें !

मुस्कुराता है वो चाँद भी,

अँधेरी ही राह पर,

फिर जगमगाते तारों को,

हम क्यों  दोष दें ! .........रचना  - राजेन्द्र सिंह कुँवर  'फरियादी'






2 comments:

शिवनाथ कुमार said...

मुस्कुराता है वो चाँद भी
अँधेरी ही राह पर !
फिर जगमगाते तारों को ,
हम क्यों दोष दें !

हर चीज के दो पहलू होते हैं - अच्छा और बुरा
आपने अच्छे पहलू को लिया .
सुंदर !

Unknown said...

मुस्कुराता है वो चाँद भी
अँधेरी ही राह पर !
फिर जगमगाते तारों को ,
हम क्यों दोष दें !......
बेहद गहन , जीवंत ,आशावादी चिंतन की भाव पूर्ण प्रस्तुति

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