Friday, January 20, 2012

मतदाता

मत दाता तू कब समझेगा 
अंगूठे की आपनी ताकत को
सबसे प्यारा खेल है ये 
इस खेल की नजाकत को !
भूले विसरे आ जाते हैं 
झुण्ड बनाकर गली -गली में 
चहरे इनके खिल उठाते हैं 
फूल -फूल में कली-कली में !
नाम पे किसी के मत जाना 
झोली में किसी की क्या रखा है 
अंगूठे को अपने ये समझना 
कोई किसी का सगा नहीं है !
न पार्टी किसी की अपनी होती 
कुर्सी का ही खेल है सारा 
उस पर मिटते ये 'फिरौती' !
तन मन धन लूट के ये 
कुर्सी के गुणगान करते 
थे कभी तुम्हारी ही 'रज'
आज तुम्हारे भगवन बनते !! ............रचना राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

7 comments:

Minakshi Pant said...

bahut sundar rachna :)

शूरवीर रावत said...

राजेंद्र जी, लोकतंत्र में जनता अपनी वोट की कीमत पहचान भी जायेगा तो क्या कर सकता है. किसी न किसी को तो वोट देना ही है और सब चोर चोर मौसेरे भाई हैं............. जब तक जीतने के लिए निश्चित मत प्रतिशत तय नहीं हो जाता या "इनमे से कोई नहीं" का विकल्प नहीं होता, तब तक वे ही लोग जीतते रहेंगे जो खिलाड़ी है.

shashi purwar said...

namaskar rajendra ji
sunder prastuti ........sach ka tana bana ..........badhai swikaren

S.N SHUKLA said...

सार्थक, सामयिक पोस्ट, आभार.

कृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" पर भी पधारें, अपनी राय दें, आभारी होऊंगा.

Maheshwari kaneri said...

सार्थक, सुन्दर प्रस्तुति!..राजेंद्र जी, यहाँ पहली बार आई बहुत अच्छा लगा ..अभिव्यंजना में आप का स्वागत है..

Chaitanyaa Sharma said...

खूब मजेदार .....

राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' said...

सभी मित्रों का आभार आशा है आपका मधुर स्नेह मिलता रहेगा

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