हम इन्सान हैं, इन्सान को इन्सान बनायें,
पड़े पत्थर राह में कौम के, उनको भी हटायें,
हम इन्सान हैं, इन्सान को इन्सान बनायें !
जमी के टुकड़े -टुकड़े करके,
हमने इसको बांटा है
छाया के लिए पेड़ लगाया,
उसमे उगता काँटा है !
हम इन्सान हैं, इन्सान को इन्सान बनायें,
अब तक बने हैं कितने खंडर
सभी को ये दिखायेंगे !
हम इन्सान हैं, इन्सान को इन्सान बनायें,
कितनी सांसों ने कौम को विस्तार बनाया,
विज्ञानं ने कब इन्सान को जीना सिखाया,
कितनी सरहदों ने लहू से प्यास बुझाई
इन्सान को इन्सान कब देता है दिखाई
हम इन्सान हैं, इन्सान को इन्सान बनायें,
पड़े पत्थर राह में कौम के, उनको भी हटायें, रचना -राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
3 comments:
बहुत सुंदर लिखा आपने..... ब्लॉग पर यह बकरी का फोटो बहुत क्यूट है.... कुछ अलग सा है... :)
Bahut bahut abhar aap ka Chaitanya ji, ye aap logon ka prem hi haijo kuch shawdon patal per rakh pata hun
विज्ञानं ने कब इन्सान को जीना सिखाया,
कितनी सरहदों ने लहू से प्यास बुझाई
इन्सान को इन्सान कब देता है दिखाई
हम इन्सान हैं, इन्सान को इन्सान बनायें,
पड़े पत्थर राह में कौम के, उनको भी हटायें,
..bahut badiya sandeshparak rachna prastuti ke liye aabhar!
Bahut achha laga aapke blog par aakar..
bahut bahut haardik shubhkamnayen..
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