मैं तो अकेले जलता हूँ,
सारी महफ़िल देख रही है,
मैं खुद से ही डरता हूँ,
कहीं मैं दीपक न बन जाऊं !
मेरे जलन की रोशनी,
उनको खार सी चुभती है,
जख्म मुझे मिले मरघट में मैं हूँ,
भला उनकी आँख क्यों दुखती है,
मैं अपनी यादो में आपने,
अरमा डुबो कर जलाता हूँ,
भला कोई हृदय क्यों आकर,
मेरे मरघट पे मंडराता है !
मुझे डर है लोग इल्जाम देंगे,
कहीं मैं दीपक न बन जाऊं !........... रचना राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
सारी महफ़िल देख रही है,
मैं खुद से ही डरता हूँ,
कहीं मैं दीपक न बन जाऊं !
मेरे जलन की रोशनी,
उनको खार सी चुभती है,
जख्म मुझे मिले मरघट में मैं हूँ,
भला उनकी आँख क्यों दुखती है,
मैं अपनी यादो में आपने,
अरमा डुबो कर जलाता हूँ,
भला कोई हृदय क्यों आकर,
मेरे मरघट पे मंडराता है !
मुझे डर है लोग इल्जाम देंगे,
कहीं मैं दीपक न बन जाऊं !........... रचना राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
5 comments:
deepak banne se hi to jag mai ujala hota hai
कवि के मन में उजाला
है दूर रवि बेचारा
बहुत बढ़िया रचना | आनंद आया पढ़कर | बधाई |
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
बहुत खूबसूरत रचना
मेरा ब्लॉग आपके स्वागत के इंतज़ार में
स्याही के बूटे
सुन्दर रचना...
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