हम इन्सान हैं, इन्सान को इन्सान बनायें,
पड़े पत्थर राह में कौम के, उनको भी हटायें,
हम इन्सान हैं, इन्सान को इन्सान बनायें !
जमी के टुकड़े -टुकड़े करके,
हमने इसको बांटा है
छाया के लिए पेड़ लगाया,
उसमे उगता काँटा है !
हम इन्सान हैं, इन्सान को इन्सान बनायें,
अब तक बने हैं कितने खंडर
सभी को ये दिखायेंगे !
हम इन्सान हैं, इन्सान को इन्सान बनायें,
कितनी सांसों ने कौम को विस्तार बनाया,
विज्ञानं ने कब इन्सान को जीना सिखाया,
कितनी सरहदों ने लहू से प्यास बुझाई
इन्सान को इन्सान कब देता है दिखाई
हम इन्सान हैं, इन्सान को इन्सान बनायें,
पड़े पत्थर राह में कौम के, उनको भी हटायें, रचना -राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'