Wednesday, August 28, 2019

अभ्यास अद्भुत कला है।

कहते हैं न अभ्यास एक अद्भुत कला है, बिना अभ्यास के पथ पर चल सकते हैं मगर दौड़ नही सकते हैं। आज हमारे सामने हजारों उदाहरण है जिन्होंने अभ्यास के बल पर खुद को साबित कर के दिखाया। अभ्यास जैंसे चिर परिचित शब्द को हिंदी की एक प्रसिद्ध शुक्ति भी बड़े सहज भाव से प्रमाणित करती है। महाकवि वृन्द जी ने कितनी सहजता से अपने इस छोटे से दोहे में अभ्यास शब्द को परिभाषित किया है

'करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात तें, सिल पर परत निसान।।'

 हम सभी ने लगभग यह दोहा जरूर पढ़ा होगा। यह दोहा भी अभ्यास की अद्भुत महिमा का गुणगान करता है।अभ्यास की सार्थकता को जानने के लिए आज सुनते हैं एक कुशल मार्केटर, मोटिवेटर, स्पीकर, आदरणीय सोनू शर्मा जी को। 


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