Friday, August 31, 2018


इंशान क्या सोचे अब उसने तो चलना है जहाँ वीन बजाये चले सपेरा वहाँ साँप निकलना है! दौलत की पोटलियों पर साँप चढ़े है रेंग रेंग कर सबने देखा मगरूर सपेरा उंगली उठाये ढेर ढेर पर आशा लगाये बैठे हम तुम सच दफन हो रहा घेर घेर पर झोली में उसकी अब तो बड़े सपोलों का भंडार है अब तरकीब ही खोज रहा नही तो बंठाधार है। @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

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सी यू ई टी (CUET) और बोर्ड परीक्षा का बोझ कब निकलेगा।

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