हमने चोटें ही तो खाई है
बचपन से इस माटी में,
कभी आरक्षण कभी घोटाले
वोटों की इन जाति में।
निकले थे सबेरा देखने
उस अंधियारी घाटी में,
जल रहे हैं अरमान अब
दीप तले छाती में। @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
बचपन से इस माटी में,
कभी आरक्षण कभी घोटाले
वोटों की इन जाति में।
निकले थे सबेरा देखने
उस अंधियारी घाटी में,
जल रहे हैं अरमान अब
दीप तले छाती में। @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
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