जिगर में बैठ कर ढून्ढते रहे आशियाना वर्षों तक,
और एक लौं के बुझते ही न जाने क्यों बिखर गए,
यूँ तो सपने हर कोई देखता है हर बार चाँद के,
छत से भी देखने को मिल जाय तो नसीब समझिए l कॉपी राईटस @ राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
और एक लौं के बुझते ही न जाने क्यों बिखर गए,
यूँ तो सपने हर कोई देखता है हर बार चाँद के,
छत से भी देखने को मिल जाय तो नसीब समझिए l कॉपी राईटस @ राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
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