प्रकृति बदल गयी
मानव की,
माँ का रूप भी बदल
गया !
बेटा वारिस माँ की
नजरों में,
बेटी का खुद घोट रही
गला !!
माँ की नजरों की
ममता,
उस पंछी सी फिरती है
!
छोड़ कर नीड अपनी,
खुद उलझन में घिरती
है !!
अपनी क्षणिक खुशियों
के लिए,
रख लेती पत्थर हृदय
पटल पर !
आखिर क्या मिलता है
उसको,
एक माँ से माँ यूँ कत्ल कर !!
माँ की ममता के इस
रूप ने,
स्वरुप जहाँ का बदल
दिया !
एक माँ ने माँ का ही
हक़ लुटा,
स्वयं माँ ने माँ को
यूँ प्रस्तुत किया !! - राजेन्द्र सिंह कुँवर
‘फरियादी’
3 comments:
bahut sunder rachna, abhar
भ्रूण हत्या से घिनौना ,
पाप क्या कर पाओगे !
नन्ही बच्ची क़त्ल करके ,
ऐश क्या ले पाओगे !
जब हंसोगे, कान में गूंजेंगी,उसकी सिसकियाँ !
एक गुडिया मार कहते हो कि, हम इंसान हैं ! -सतीश सक्सेना
बहुत खूब
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