उजाला खुद बिखरेगा तुम,
ज्योति जला के देखो !
पग पग पर रुकना भी पड़ेगा,
एक कदम बढ़ाके देखो !
बहुत कुचले है सर राह में,
एक बार सर उठा के देखो !
रोकेगा खुद तुम्हें तुम्हारा ‘हौसला’
एक इरादा खुद पे जाता के देखो !
चिंगारियां कई दिखेंगी रौशनी में,
तुम एक लौ तो जला के देखो !
कई चौराह मिलिंगे राह में
तुम एक राह तो बनाके देखो !
आवाजे कई मिलेंगी साथ में
तुम एक आवाज उठा के देखो ! - रचना – राजेन्द्र
सिंह कुँवर ‘फरियादी’
2 comments:
बहुत सुंदर , भाव भी और शब्दों का चयन भी , शुभकामना
तुम एक लौ तो जला के देखो ...वाकई जरूरत है
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