Thursday, May 16, 2013

माँ


प्रकृति बदल गयी मानव की,
माँ का रूप भी बदल गया !
बेटा वारिस माँ की नजरों में,
बेटी का खुद घोट रही गला !!

माँ की नजरों की ममता,
उस पंछी सी फिरती है !
छोड़ कर नीड अपनी,
खुद उलझन में घिरती है !!

अपनी क्षणिक खुशियों के लिए,
रख लेती पत्थर हृदय पटल पर !
आखिर क्या मिलता है उसको,    
एक माँ से माँ यूँ कत्ल कर !!

माँ की ममता के इस रूप ने,
स्वरुप जहाँ का बदल दिया !
एक माँ ने माँ का ही हक़ लुटा,
स्वयं माँ ने माँ को यूँ प्रस्तुत किया !!  - राजेन्द्र सिंह कुँवर ‘फरियादी’ 



Sunday, May 5, 2013

एक लौ तो जला के देखो


उजाला खुद बिखरेगा तुम,

ज्योति जला के देखो !

पग पग पर रुकना भी पड़ेगा,

एक कदम बढ़ाके देखो !

बहुत कुचले है सर राह में,

एक बार सर उठा के देखो !

रोकेगा खुद तुम्हें तुम्हारा ‘हौसला’

एक इरादा खुद पे जाता के देखो !

चिंगारियां कई दिखेंगी रौशनी में,

तुम एक लौ तो जला के देखो !

कई चौराह मिलिंगे राह में

तुम एक राह तो बनाके देखो !

आवाजे कई मिलेंगी साथ में

तुम एक आवाज उठा के देखो ! - रचना – राजेन्द्र सिंह कुँवर ‘फरियादी’ 



Monday, April 29, 2013

कनु रूप धारियुं च युन्कू

नजर कुसांगी खोजदी खोजदी,
अपणी गौं की पुंगडीयौ तै
अंखियों मा कांडा सी चुभणा छन्,
देखिक यूँ कुड्डीयौ तै ! 

जौं मंखियों का खातिर,
गौं मा मोटर आयी,
बदलिगे मिजाज तौंकू,
अपणों छोड़ी चली ग्याई !
यूँ साग सग्वाड़ीयों तै
कैं जुकड़ी बिट्टी ठुकरैगे,
क्या उपजी होलू मतिमा तैउंकू,
की निर्भागी रुसांगे !
निर्भागी रुसांगे ! निर्भागी रुसांगे !
निर्भागी रुसांगे ! निर्भागी रुसांगे !   
नजर कुसांगी खोजदी खोजदी,
अपणी गौं की पुंगडीयौ तै !!
अंखियों मा कांडा सी चुभणा छन्,
देखिक यूँ कुड्डीयौ तै ! 

गौं भिट्टी उक्ल्यी कु बाटू,
गौं कु पंधेरों सी नातू
जाणी कख ख्वैग्यायी,
आपणों की बणायीं सगोड़ी टपरान्दी रैगे,
धुर्प्ल्याकु द्वार टूटयूँ उर्ख्याली ख्वैगे !
नजर कुसांगी खोजदी खोजदी,
अपणी गौं की पुंगडीयौ तै
अंखियों मा कांडा सी चुभणा छन्,
देखिक यूँ कुड्डीयौ तै !  - गीत – राजेन्द्र सिंह कुँवर ‘फरियादी’



मशरूम च्युं

मशरूम ( च्युं ) मशरूम प्राकृतिक रूप से उत्पन्न एक उपज है। पाहाडी क्षेत्रों में उगने वाले मशरूम।