शिक्षा, जॉब, व्यवसाय की आशाएँ हमारे मन मस्तिष्क पर बरसाती नदियों की तरह अपने तटबंध तोड़ देती हैं। हम न चाहते हुये भी बहाव के उस मलवे की भांति बिखर जाते हैं। ज्यादातर ऐंसा ही होता है। जब तक हम लक्ष्य निर्धारित नही करेंगे और देखा देखी के रास्तों पर दौड़ना नही छोड़ेंगे तब तक आशाओं के बिंदुओं पर निराशाओं के घाव ही उभरते रहेंगे। आज यदि संसाधनों का उचित उपयोग किया जाय तो जॉब या व्यवसाय करना सबसे सरल है बस कमी है तो खुद को सुनियोजित ढंग से आगे न बढ़ा पाने की। जल्दी आप सभी मित्रों के लिए अपने ब्लॉग पर लेकर आ रहा हूँ जॉब और व्यवसाय की कुछ जानकारियाँ। आज कल बहुत से मित्रों के साथ साथ कई उन युवाओं के फोन आते हैं जो स्कूलिंग या प्रोफेशनल कोर्स कर के उस हकीकत वाली जमीं पर पाँव रखते हैं जहाँ से जीवन की अबोध लड़ाई शुरू होती है। सबसे पहले लोग जॉब तलाशते हैं ऐंसा क्यों ? ऐंसा होना भी स्वभाविक है क्योंकि 99%लोग अपने बच्चों को जॉब के लिए ही स्कूल, कालेज या प्रोफेशनल इंस्टीट्यूटों में भेजते हैं। सायद यह एक परंपरा है, हमें इससे कैंसे निकलना है यह भी मैं अपने ब्लॉग में बताने की कोशिश करूँगा, लेकिन इन सभी के पीछे हमारी एक मानसिकता है हम लोग कभी भी परंपरा से हट के खड़े होने से डरते हैं। डर कई तरह के होते हैं समाज का डर, परिवार का डर, खुद के असफल या पीछे रह जाने का डर, इन सभी डरों में मन की स्थिति को न पहिचान पाने का डर सबसे अधिक प्रभावशाली होता है। इस डर के कई कारण होते हैं इसका भी उल्लेख किया जायेगा। हो सकता है मेरे शब्द आपको आगे ले जाने में असमर्थ हो परन्तु मेरी शत-प्रतिशत कोशिश रहेगी शब्दों को मनन करने के बाद बार बार आपका मन और मस्तिष्क आपकी आशाओं को जागृत करता रहेगा और आपको अपनी आशा अनुरूप जॉब या व्यवसाय की ओर बढ़ने की शक्ति मिल पायेगी। हाँ इसके लिए आपको ब्लॉग पर निरंतर बना रहना होगा।
ब्लॉग में आपको अनेक विषय वस्तुओं पर जानकारियाँ मिलेंगी जैंसे Education, Technology, Business, Blogging आदि।
Sunday, July 29, 2018
Friday, July 27, 2018
अखबारों की ये हालत है
हर पेज पर छीना झपटी
कहीं पर धरती की बेचैनी
कहीं पर साँसें हैं अटकी
कहीं मधुप से मंडराते हैं
कहीं पर आग लगाते हैं
गरजना सीखो ये मेघों इनसे
ये अखबार पानी बरसाते हैं।
शाम सुबह और दिन उलझे
सूरज चाँद सितारे झुलसे
इनसे आग निकल रही है।
बच रे मानव इनके कुल से।
इसका विस्तार हुआ जब से
मानव लाचार हुआ तब से
कलम सिसकती हैं देख नजारा
मदमस्त है ये अखबार आवारा। @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
हर पेज पर छीना झपटी
कहीं पर धरती की बेचैनी
कहीं पर साँसें हैं अटकी
कहीं मधुप से मंडराते हैं
कहीं पर आग लगाते हैं
गरजना सीखो ये मेघों इनसे
ये अखबार पानी बरसाते हैं।
शाम सुबह और दिन उलझे
सूरज चाँद सितारे झुलसे
इनसे आग निकल रही है।
बच रे मानव इनके कुल से।
इसका विस्तार हुआ जब से
मानव लाचार हुआ तब से
कलम सिसकती हैं देख नजारा
मदमस्त है ये अखबार आवारा। @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
Wednesday, July 25, 2018
जूड़ी दाथुडी हँसुली नाथुली
कन ऊ हमारा गैहणा छा
कथगा चुनाव देखिन हमन्
फिर भी हम सब भै-बैणा छा।
पर व्है क्याच यूँ द्वी सालू मा
आपस मा ही कटेंण् लग्याँ छा
बौक्णा छा झंडा लुकारु आफूतै
भाजपा काँग्रेस बतौण् लग्याँ छा।
गाळ-घातन् नि बौल्येंदा छा इथ्गा
जथ्गा अज्क्याल् बौल्येंदा छा
अंगोठू लगैकी इथ्गा तचिग्याँ
तैका तेल सी खौलेणा छा। @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
कन ऊ हमारा गैहणा छा
कथगा चुनाव देखिन हमन्
फिर भी हम सब भै-बैणा छा।
पर व्है क्याच यूँ द्वी सालू मा
आपस मा ही कटेंण् लग्याँ छा
बौक्णा छा झंडा लुकारु आफूतै
भाजपा काँग्रेस बतौण् लग्याँ छा।
गाळ-घातन् नि बौल्येंदा छा इथ्गा
जथ्गा अज्क्याल् बौल्येंदा छा
अंगोठू लगैकी इथ्गा तचिग्याँ
तैका तेल सी खौलेणा छा। @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
Tuesday, July 24, 2018
ट्रेनर्स एक एक सदाबहार कैरियर है, किसी भी विषय या टेक्नोलोजी को पढ़ना अपने आप ने एक अद्भुत कला है नये युवाओं के लिए सबसे बेहतरीन कैरियर सावित हो सकता हैl एम. आई. एस. (MIS) का किसी भी बड़ी कंपनी में बेहतरीन स्कोप हैl नॉएडा में एम आई एस ट्रेनिंग सेण्टर एक्सल प्रिन्स के नाम से बहुत विख्यात हैl
Prince Sethi
Excel Prince,
L 98, Sector 11, Near Metro Multi Specialty Hospital,
Noida- 201301 (U.P.) India
+91- 9953872217, 9810378217
फिर उठी वही नजर तुम्हारी
जिस नजर से तुमने छोड़ा था,
घर-गाँव, खेत-खलिहान,
अपने स्वार्थ के लिए!
आज फिर वही स्वार्थ
जागा है सायद तुम्हारा
क्योंकि तुम पक चुके हो
समय की आग में और
बन चुके हो फिर इंसान!
खोज रहे हो अपने धरातल को
स्वच्छ हवा पानी के घर को
कौन समझाए तुम्हें अब कैंसे
संभालोंगे इस भू तल के सौन्दर्य को।
तुम फिर चक्रव्यूह में उतर रहे हो
अर्जुन नही अभिमन्यु बन रहे हो
कर्त्तव्य नही कौशल जरूरी होता है
जीवन का क्या ये पल-पल में रोता है।
थक चुके हो सोच लो फिर, वक्त है
वक्त की दौड़ में वक्त ही कुचलेगा
स्वार्थ पीड़ा ने ठगा है फिर तुम्हें,
प्रकृति, पर्यावरण और पलायन को बदनाम मत कीजियेगा। @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी
जिस नजर से तुमने छोड़ा था,
घर-गाँव, खेत-खलिहान,
अपने स्वार्थ के लिए!
आज फिर वही स्वार्थ
जागा है सायद तुम्हारा
क्योंकि तुम पक चुके हो
समय की आग में और
बन चुके हो फिर इंसान!
खोज रहे हो अपने धरातल को
स्वच्छ हवा पानी के घर को
कौन समझाए तुम्हें अब कैंसे
संभालोंगे इस भू तल के सौन्दर्य को।
तुम फिर चक्रव्यूह में उतर रहे हो
अर्जुन नही अभिमन्यु बन रहे हो
कर्त्तव्य नही कौशल जरूरी होता है
जीवन का क्या ये पल-पल में रोता है।
थक चुके हो सोच लो फिर, वक्त है
वक्त की दौड़ में वक्त ही कुचलेगा
स्वार्थ पीड़ा ने ठगा है फिर तुम्हें,
प्रकृति, पर्यावरण और पलायन को बदनाम मत कीजियेगा। @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी
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