Friday, July 26, 2019

******* अक्षर *******

किस्मत तुम्हारी भी नही
किस्मत हमारी भी नही
कितना चाहो बिखर जाओ
पर रहोगे सदैव पंक्तियों में।

किस्मत तुम्हारी भी नही
किस्मत हमारी भी नही
पीढ़ियाँ कितनी बदल दो
पर रहोगे सदैव गिनतियों में। @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'





Monday, July 8, 2019

अभिरुचि शिक्षा


दुनियाँ में हर इंशान के अंदर भिन्न भिन्न अभिरुचियों के सैलाव अंगड़ाई लेते रहते हैं यदि आप इनको पकड़ पाते हैं तो निश्चित ही आप रचनात्मक अभिरुचि के परम साधक बन सकते हैं। समय और उम्र के अनुरूप हर जीव की रुचि परिवर्तित होती रहती है इन सभी प्रकृति परिवर्तनों के बावजूद भी यदि अभिरुचि व्यक्ति को अपनी ओर खींचती हो तो निश्चित आपकी मंजिल उधर ही है। शिक्षा के साथ साथ रचनात्मकता का निखार होना भी अति आवश्यक है आज यदि टेक्नोलॉजी पर गहराई से नजर दौड़ाई जाय तो रचनात्मकता ज्यादा प्रभावी है यही उत्कृष्ट सफलता का मूल राज भी है। आज जानते हैं  नागार्जुन संदुपतला जी द्वारा बाँसुरी पर उँगलियों की चाल को कैंसे प्रभावी बनाया जाय। फेसबुक, व्हाट्सएप, यूट्यूब के साथ साथ जितने भी सोशियल मीडिया है यदि हम उनका उचित उपयोग कर पायें तो आजीविका का भी एक साधन हमारे पास उपलब्ध हो सकता है।  
#बाँसुरी
#शिक्षा
#स्कूल
#गुरुकुल
#अभिरुचि










Tuesday, July 2, 2019

बीमार सा कुछ तन लगता है,
बीरान सा कुछ मन लगता है।
खिला रही है जिंदगी फिर से,
क्यों ऐंसा ये स्वपन लगता है।

ये मौसम भी बदलता है ऐंसे,
मेघों को छोड सूरज पकड़ता है।
चिपकता है कीचड़ सा पाँव में,
मिट्टी को छोड रफ्तार जकड़ता है। @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'


Monday, July 1, 2019

तुम आते हो यादों में क्यों
ऐंसा कौन सा काम किया,
बातें की थी बातों का क्या
क्यों सपनों को थाम लिया।

पग पग पर बैठे हैं सब वो
मान लूँ कैंसे तुम ही रब हो।
शक्ल सूरत के भंडार नही हैं
जलते क्यों हो अँगार नही हैं।

तुम आते हो यादों में क्यों
ऐंसा कौन सा काम किया,
बातें की थी बातों का क्या
क्यों सपनों को थाम लिया।

बहते जल सा है निर्मल मन
गीली मिट्टी है चर्चित ये तन।
कभी धुलता है कभी घुलता है
रहो किनारे यूँ करो जतन।

धूप छाव को लेकर चलते
तन-मन को लेप न करते।
नजरों के इन पहरों पर तो
कैंसे हम यूँ खेद न करते।

तुम आते हो यादों में क्यों
ऐंसा कौन सा काम किया,
बातें की थी बातों का क्या
क्यों सपनों को थाम लिया। @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'






Sunday, June 30, 2019

'जान न अनजान रहने दे'

तू न जान मुझे अनजान रहने दे,
शब्द न छुपा यूँ तू मुझे कहने दे।
मैं जलता रहा खुद में खुदी के लिए
ये बारिश है तो क्या इसको भी सहने दे।। @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

#जान_अनजान

Thursday, June 20, 2019

मुठ्ठी भर यादें

तेज कदमों की रफ्तार
समय के साथ दौड़ती
जिंदगी क्या खोज रही
मुट्ठी भर यादें लिए।

सुख भी दुःख भी
पल-पल बदल रहा
फिर भी मुसाफिर सी
भटकती जिंदगी
मुट्ठी भर यादें लिए। @- राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Wednesday, June 19, 2019

छू लेता हूँ

छू लेता हूँ कभी कभी
इन शब्दों के बंधन को
समेट ने की कोशिश भर है
बस मन-मंथन के क्रंदन को।

छू लेता हूँ!

कहानियाँ समेटना
बस की न मेरी बात है
औकात है हर शब्द की
हमारी क्या बिसात है।  @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'





मशरूम च्युं

मशरूम ( च्युं ) मशरूम प्राकृतिक रूप से उत्पन्न एक उपज है। पाहाडी क्षेत्रों में उगने वाले मशरूम।