Tuesday, July 2, 2019

बीमार सा कुछ तन लगता है,
बीरान सा कुछ मन लगता है।
खिला रही है जिंदगी फिर से,
क्यों ऐंसा ये स्वपन लगता है।

ये मौसम भी बदलता है ऐंसे,
मेघों को छोड सूरज पकड़ता है।
चिपकता है कीचड़ सा पाँव में,
मिट्टी को छोड रफ्तार जकड़ता है। @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'


Monday, July 1, 2019

तुम आते हो यादों में क्यों
ऐंसा कौन सा काम किया,
बातें की थी बातों का क्या
क्यों सपनों को थाम लिया।

पग पग पर बैठे हैं सब वो
मान लूँ कैंसे तुम ही रब हो।
शक्ल सूरत के भंडार नही हैं
जलते क्यों हो अँगार नही हैं।

तुम आते हो यादों में क्यों
ऐंसा कौन सा काम किया,
बातें की थी बातों का क्या
क्यों सपनों को थाम लिया।

बहते जल सा है निर्मल मन
गीली मिट्टी है चर्चित ये तन।
कभी धुलता है कभी घुलता है
रहो किनारे यूँ करो जतन।

धूप छाव को लेकर चलते
तन-मन को लेप न करते।
नजरों के इन पहरों पर तो
कैंसे हम यूँ खेद न करते।

तुम आते हो यादों में क्यों
ऐंसा कौन सा काम किया,
बातें की थी बातों का क्या
क्यों सपनों को थाम लिया। @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'






Sunday, June 30, 2019

'जान न अनजान रहने दे'

तू न जान मुझे अनजान रहने दे,
शब्द न छुपा यूँ तू मुझे कहने दे।
मैं जलता रहा खुद में खुदी के लिए
ये बारिश है तो क्या इसको भी सहने दे।। @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

#जान_अनजान

Thursday, June 20, 2019

मुठ्ठी भर यादें

तेज कदमों की रफ्तार
समय के साथ दौड़ती
जिंदगी क्या खोज रही
मुट्ठी भर यादें लिए।

सुख भी दुःख भी
पल-पल बदल रहा
फिर भी मुसाफिर सी
भटकती जिंदगी
मुट्ठी भर यादें लिए। @- राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Wednesday, June 19, 2019

छू लेता हूँ

छू लेता हूँ कभी कभी
इन शब्दों के बंधन को
समेट ने की कोशिश भर है
बस मन-मंथन के क्रंदन को।

छू लेता हूँ!

कहानियाँ समेटना
बस की न मेरी बात है
औकात है हर शब्द की
हमारी क्या बिसात है।  @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'





Saturday, June 15, 2019

संदीप रावत जी गढ़वाली कवि Sandeep Rawat ji Garhwali kavi

कलम के सिपाई एवं मधुर स्वर से शब्दों के साधक आदरणीय श्री संदीप रावत जी से उनके आवास श्रीनगर ( डांग ) में एक अविस्मरणीय मुलाकात हुई। आदरणीय संदीप जी हमारी युवा पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक के रूप में भी काम कर रहे हैं। उनका मधुर कंठ और पाहाडी क्षेत्रों की विलुप्त होते हुये शब्दों को मंच तक पहुंचा रहे हैं उनकी गायन शैली का मैं कायल हूँ। उन्होंने मुझे अपनी पुस्तक उदरोल भेंट स्वरूप प्रदान की। मेरा सौभाग्य है कि ऐंसे मनीषियों से मुझे मिलने का सौभाग्य मिलता है। बाकी पुस्तक पढ़ कर उनकी रचनाओं को आप सभी मित्रों तक पहुँचता रहूँगा। आदरणीय संदीप रावत जी के ब्लॉग का अवलोकन आप इस लिंक पर कर सकते हैं।





Friday, June 14, 2019

दादी जी की यादें


हमारे बचपन की यादें आज भी इस बीरान धरोहर में संभाल के रखी हुई हैं। हमारे पाहाडी गाँवों में कुछ प्राकृतिक कारणों की वजह से ( इससे संस्कृति या वैज्ञानिक पहलू का आधार भी माना जाता है) करीब करीब सभी लोग कफड़ ( कफड़ एक ऐंसा नाम जिसका उपयोग दो तीन महीने के लिए गाँव से हट कर दूसरे आवास बनाये जाते थे उन्हें कहा जाता था) चले जाते थे। हमने भी इस परम्परा का भरपूर आनंद लिया और इस जीवन को बड़े ही सहजता के साथ जीया। अपने बी. ए. तक के जीवन काल में मैं यहाँ पर रहा। सौभाग्य की बात मेरे लिए ये है कि मेरे बेटे का पहला जन्मदिन भी 2004 अगस्त में यहीं पर मनाया गया। इस समय के बाद लगभग यह खंडहर होकर भी अति उत्साह के साथ हमारी प्रतीक्षा में दिन-रात यूँ ही टकटकी लागाये आपनो को देखने के लिए लालाहित रहता है। आज जब हमारे परिवार की नव बधुएँ एवं बच्चे हम सभी जो अपने रोजगार एवं बच्चों की शिक्षा के कारण इस धरोहर को संभाल नही पाये। मेरा बचपन यहां की कही रौचक कहानियों से भरा पड़ा है। लगभग डेढ़ दो किलोमीटर दूर से हम लोग अपने एवं अपने पशुओं के लिए पानी लेकर आते थे। तब यहाँ पर बरसाती पानी को संगठित कर के उसे भी बड़े चाव के साथ उपयोग किया जाता था। पुरानी पीढ़ियाँ अक्सर इस जल को शुद्ध प्रकृतिक रूप से फिल्टर जल कहती थी और यह जल आयुर्वेद की बहुत सी दवाईयों में भी उपयोग किया जाता है वो लोग इस पर अधिक कह सकते हैं जो मेरी मित्रता सूचि में वैद्य के रूप में आज भी इस कार्य को अंजाम दे रहे हैं। हमारा यह घर हमारे गाँव के कुलदेवता श्री नगेला एवं हीत देवता के मूल लिंग स्थानों के पास है इससे हमें बचपन में यहाँ पर अकेला परिवार होने के कारण भूत पिचाशों का डर भी नही सताता था। यदि आप पाहाडी गाँवों से हैं तो आप भूत-पिचासों, जैंसे, भैरू, एढ़ी, रैम्म, आछरी, तरह तरह के छलों के बारे में भली भांति अवगत होंगे। एक याद आज भी ताजी है मैं बीमार हुआ था, दादी तब अकेली हमारी देख रेख के लिए घर पर थी उम्र का ध्यान नही है मगर यह दृश्य आज भी बार बार मुझे याद दिलाता है। जब मैं बीमार हुआ, सायद को भूत का छल लगा था दादी ने उडद की साबुत डाल और कुछ चावल निकाल कर मेरे ऊपर घूमा दिये और फिर एक जोरदार चांटा मेरे गाल पर जड़ा। मैं ठीक हो गया लेकिन उसी पश्चात दादी जी बीमार हो चली सायद दादी अपनी उम्र के अंतिम पड़ाव पर थी, मगर कई देवता आये दादी ठीक नही हो पायी, एक रात हमारे घर के नीचे कुछ आवाजें आई ममी को सुनाई दी, जैंसे कोई लठ के सहारे बुजुर्ग लोग अक्सर गाँव मे चलते हैं। देव स्थान के पास घर होने से अक्सर हम लोग इन सभी बाधाओं से डरते नही थे। सुबह 8 बजे का समय होगा हमारे घर के सामने कफना गाँव बहुत अच्छे से नजर आता था वहाँ की आवाजें भी सुनाई देती थी, इसका फायदा तब दिखता था जब गाँव में कोई चोर आता था उसे भगाने के लिए अक्सर एक दूसरे गाँव से लोग जोर जोर से आवाजें (हल्ला ) निकालते थे। हाँ बात दादी की हो रही थी, अक्सर गाँवों में कहा या सुना जाता है जब भी किसी की मृत्यु होती है उसे लेने के कोई आता है ठीक यही हुआ सुबह की पीली धूप कफना गांव की पहाड़ियों से नीचे उतार रही थी और माँ दादी को इस दुःख से निकलने के लिए दिलासा दे रही थी अचानक दादी जी ने धूप देखने की लालसा उजागर की, ममी में दादी को सिराहने से गोद में लिया और खिड़की से कफना की पहाड़ियों से उतरती हुई धूप दिखाने का प्रयत्न किया, दादी जी ने धूप देख कर कहा आज बहुत अच्छी एकदम सुनहरी धूप है इसके तत्पश्चात दादी ने ममी से कहा कि ये दो लोग हमारे घर क्यो आ रहे है ममी ने कहा कोई नही है आप कोई चिंता मत करो इस पल दादी जी ने मम्मी की गोदी पर अपने प्राण त्याग दिये। मम्मी को भी पता नही चला जब कुछ देर बाद कोई गाँव, अक्सर लोग गाँव से कफड़ जाते समय हमारे इस घर के रास्ते ही आते थे चढ़ाई होने के कारण प्यास लग जाती थी। दादी जी नही रही। लेकिन जब आज भी मैं यहाँ पर आता हूँ दादी जी को अपनी स्मृतियों में यहीं पर पाता हूँ।
आज भी दादी जी का आशीर्वाद पितृ स्वरूप हमारे साथ हर पल रहता है।
#बचपनकीयादें #पितृदेवता #मरुडा, #सिरसेडगाँव
#कफड़ #दादीजी #मेराबचपन 








मशरूम च्युं

मशरूम ( च्युं ) मशरूम प्राकृतिक रूप से उत्पन्न एक उपज है। पाहाडी क्षेत्रों में उगने वाले मशरूम।