Sunday, September 2, 2018


लेखन में हैं असीमित संभावनाएं
आज बात करते हैं लेखन की। सामान्यतः हम में से अधिकांश लोग कहीं न कहीं कुछ न कुछ लिखते आ रहे हैं चाहे वो सोशियल मीडिया प्लेटफॉर्म ही क्यों न हो, मगर इस लेखन से कितनो को रोटी कमाने का रास्ता मिलता है सायद 1 या दो प्रतिशत लोगो को। जी हां लेखन रोजगार का एक सशक्त माध्यम है लेकिन हम इसको समझ नही पाते हैं। अधिकांश लोग आजकल फेसबुक या अन्य प्लेटफॉर्मों पर कविता, गीत, गद्य आदि लिख रहे हैं और कुछ लोग तो पुस्तकों को भी प्रकाशित करवा रहे हैं फिर हम में से बहुत कम लोग लेखन की उपयोगोता समझते हैं। सायद हम इसलिए भी नही समझ पाते हैं क्योंकि जिस परिवेश में हमारी शिक्षा दीक्षा हुई है वहाँ पर कभी भी लेखन के महत्व को समझाया ही नही गया और न ही लेखन से रोजगार के स्रोतों के बारे में जानकारियाँ दी गयी हैं। लेकिन आज के समय को यदि हम लोग समझ पायें तो यह निष्कर्ष निकलता है कि बिना लेखन के हर क्षेत्र वीरान है, लेखन के बिना आज बाजार नही उभर सकता, लेखन के बिना इंसान एक कदम आगे नही बढ़ सकता, लेखन ही एक मात्र रास्ता है आज जो संपूर्ण विश्व को एकाग्र करता है। आज यदि हम लेखन के महत्व को समझने में सफल होते हैं तो हमें न तो रोजगार की चिंता रहेगी और नही स्वरोजगार शुरू करने में कोई परेशानी महसूस होगी। समझ लीजिए बिना लेखन के दुनियॉ में कुछ भी न तो खरीदा जा रहा है और न ही बेचा जा रहा है। आज के समय मे यदि आप अपना कैरियर लेखन को लेकर आगे बढ़ाना चाहते हैं या स्वरोजगार की ओर लेखन को लेकर आगे बढ़ना चाहते हैं तो यह राह सबसे सरल राह है लेकिन आपको स्वयं इस रास्ते की गहन जानकारियाँ सीखनी पड़ेंगी। स्वतंत्र आर्टिकल लेखक, ब्लॉग लेखक, विशेष क्षत्रों पर लेख, विज्ञापनों के लिए लेख, फिल्मों के लिए गीत, डाइलॉग, थीम आदि, प्रकाशनों के लिए पुस्तकें, कविताएँ, कहानियाँ, यह रास्ते लेखन के क्षेत्र को बहुत ऊंचाईयों तक लेकर जाते हैं। बस जरूरत है इन रास्तों पर कैंसे आगे बढ़ा जा सकता है यह सीखने की। यह एक मात्र ऐंसा क्षेत्र है जिस की ज्यादा जानकारियाँ हमें मालूम नही होती, आज किस किस को लेखक की जरूरत पड़ रही है यह समझने की जरूरत है। किसी भी बस्तु को बेचने मे आज सेल्समेन से ज्यादा एक लेखक जी जरूरत महसूस होती जा रही है। कंपनी हो चाहे प्रकाशन, फिल्म हो चाहे विज्ञापन, सोशियल मीडिया हो चाहे प्रोफेशनल मीडिया, नेता हो चाहे अभिनेता, मोटिवेटर हो चाहे कोई कार्यक्रम हो हर जगह लेख और लेखक की उपयोगिता मुख्य रूप से होती है,कोई वेबसाईट और कोई पुस्तक बिना लेखक के कभी भी परिपूर्ण नही हो सकती, हां हर कोई लेखक नही बन सकता यह सभी को मालूम है मगर ये भी सभी जानते हैं कि यदि लेखन की कुछ तकनीकी सिख ली जाय तो हर कोई लेखन कर सकता है। तो आईये अपने कदम लेखन की ओर आगे बढ़ाएं।

Friday, August 31, 2018


इंशान क्या सोचे अब उसने तो चलना है जहाँ वीन बजाये चले सपेरा वहाँ साँप निकलना है! दौलत की पोटलियों पर साँप चढ़े है रेंग रेंग कर सबने देखा मगरूर सपेरा उंगली उठाये ढेर ढेर पर आशा लगाये बैठे हम तुम सच दफन हो रहा घेर घेर पर झोली में उसकी अब तो बड़े सपोलों का भंडार है अब तरकीब ही खोज रहा नही तो बंठाधार है। @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

इंशान क्या सोचे अब उसने तो चलना है जहाँ वीन बजाये चले सपेरा वहाँ साँप निकलना है! दौलत की पोटलियों पर साँप चढ़े है रेंग रेंग कर सबने देखा मगरूर सपेरा उंगली उठाये ढेर ढेर पर आशा लगाये बैठे हम तुम सच दफन हो रहा घेर घेर पर झोली में उसकी अब तो बड़े सपोलों का भंडार है अब तरकीब ही खोज रहा नही तो बंठाधार है। @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Monday, August 27, 2018


कौन नही चाहता कि वह एक अध्यापक बने, एक अच्छा वक्ता बने, एक अच्छा ट्रेनर बने, एक बेहतरीन फैकल्टी बने। इस सब के लिए आपके पास अच्छी स्कूलिंग, अच्छी एजुकेशन, उत्तम शैक्षिक रिकार्ड आदि न जाने क्या क्या होना चाहिए। मगर ये भी सच है अच्छे ट्रेनर या अच्छे मोटिवेशनल होने के लिए जरूरी नही आपके पास अच्छा एजुकेशन ट्रेक रिकॉर्ड हो। आपके पास अपनी कार्यप्रणाली की अच्छी समझ, लोगों के मार्गदर्शन की क्षमता, कुछ अलग करने का विचार, जीवन के चैलेंज को स्वीकार ने की क्षमता होनी चाहिए। आपके अंदर जोखिम को मात देनी की ताकत को पैदा करने वाला विचार विद्यमान होना चाहिए। आईये आज इसी कड़ी में मिलते है एक छोटे 12 साल के थॉमस सुरेज से। आशा ही नही पूरी उम्मीद है आप भी अपने विचारों को गति देने के लिए सदैव तत्पर रहेंगे।

Thursday, August 23, 2018

बसग्याळ हो और अपने पहाड़ी जंगली फल घिंगारु की याद न आये संभव ही नही है।
"घिंघारू"__हिमालयी क्षेत्र में पायी जानेवाली वनस्पति कहते है कि ईश्वर की बनायी हर रचना का अपना महत्व है और ऐसा ही कुछ हिमालयी क्षेत्र में पायी जानेवाली वनस्पतियों के सन्दर्भ में भी सत्य प्रतीत होता है। इन वनस्पतियों की झाडियों में कुछ ऐसे फल पाए जाते हैं जिन्हें सुन्दरता के साथ-साथ पक्षी भी खाना पसंद करते हैं.. आप सेब के गुणों से तो परिचित ही होंगे लेकिन आज हम आपका परिचय हिमालयी क्षेत्र में पाए जानेवाले छोटे-सेब से कराते हैं ,जी हाँ बिलकुल सेब से मिलते जुलते ही इसके फल 6-8 mm के आकार के होते है। पर्वतीय क्षेत्र में "घिंघारू" के नाम से जाना जाता है! Rosaceae कुल की इस वनस्पति का लेटिन नाम Pyrancatha crenulata है जिसे "हिमालयन-फायर-थोर्न" के नाम से भी जाना जाता है। इसके छोटे-छोटे फल बड़े ही स्वादिष्ट होते हैं, जिसे आप सुन्दर झाड़ियों में लगे हुए देख सकते हैं I इसे व्हाईट-थोर्न के नाम से भी जाना जाता है। यह एक ओरनामेंटल झाड़ीदार लेकिन बडी उपयोगी वनस्पति है। आइये इसके कुछ गुणों से आपका परिचय कराते हैं :- -इसकी पत्तियों से पहाडी हर्बल चाय बनायी जाती है! - इसके फलों को सुखाकर चूर्ण बनाकर दही के साथ खूनी दस्त का उपचार किया जाता है! -इस वनस्पति से प्राप्त मजबूत लकड़ियों का इस्तेमाल लाठी या हॉकी स्टिक बनाने में किया जाता है! -फलों में पर्याप्त मात्रा में शर्करा पायी जाती है जो शरीर को तत्काल ऊर्जा प्रदान करती है! -इस वनस्पति का प्रयोग दातून के रूप में भी किया जाता है जिससे दांत दर्द में भी लाभ मिलता है! -इसके फलों से निकाले गए जूस में रक्त-वर्धक प्रभाव पाया जाता है जिसका लाभ उच्च हिमालयी क्षेत्रों में काफी आवश्यक माना गया है! -इसे प्रायः ओर्नामेंटल पौधे के रूप में साज -सजा के लिए 'बोनसाई' के रूप में प्रयोग करने का प्रचलन रहा है ! -इस कुल की अधिकाँश वनस्पतियों के बीजों एवं पत्तों में एक जहरीला द्रव्य 'हायड्रोजन-सायनायड' पाया जाता है जिस कारण इनका स्वाद कडुआ होता है एवं इससमें एक विशेष प्रकार की खुशबू पायी जाती है। अल्प मात्रा में पाए जाने के कारण यह हानिरहित होता है तथा श्वास-प्रश्वास की क्रिया को उद्दीपित करने के साथ ही पाचन क्रिया को भी ठीक करता है। -घिंघारू के बीजों एवं पत्तियों में पाए जानेवाले जहरीले रसायन "हायड्रोजन सायनायड" के कैंसररोधी प्रभाव भी देखे गए हैं लेकिन अधिक मात्रा में इनका सेवन श्वासावरोध उत्पन्न कर सकता है।

Wednesday, August 22, 2018


तुम क्या हो बिना जाने ये
क्या समझ बैठे हो खुद को
एक दीप क्या जला आगे
खुदा समझ बैठे हो खुद को।
उंगलियों की ताकत का ये नजारा
तमाशा है समझा दीजिए खुद को
यहाँ कौन ठहरा है भला मैदान में
आसान है समझना बता दो बुत को! © - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Tuesday, August 21, 2018

यदि संघर्ष ही करना है तो अपनी जिग्यांसाओं के झुरमुटों में अपने हृदय की आशाओं को टटोलते हुये आगे बढ़ो। निश्चित ही कोई नया रास्ता मिलेगा आने वाली पीढ़ी के लिए। @ राजेन्द्र सिंह कुँवर फरियादी'

मशरूम च्युं

मशरूम ( च्युं ) मशरूम प्राकृतिक रूप से उत्पन्न एक उपज है। पाहाडी क्षेत्रों में उगने वाले मशरूम।