ब्लॉग में आपको अनेक विषय वस्तुओं पर जानकारियाँ मिलेंगी जैंसे Education, Technology, Business, Blogging आदि।
Wednesday, July 26, 2017
Tuesday, July 25, 2017
Monday, July 24, 2017
फिर उठी वही नजर तुम्हारी
जिस नजर से तुमने छोड़ा था,
घर-गाँव, खेत-खलिहान,
अपने स्वार्थ के लिए!
जिस नजर से तुमने छोड़ा था,
घर-गाँव, खेत-खलिहान,
अपने स्वार्थ के लिए!
आज फिर वही स्वार्थ
जागा है सायद तुम्हारा
क्योंकि तुम पक चुके हो
समय की आग में और
बन चुके हो फिर इंसान!
जागा है सायद तुम्हारा
क्योंकि तुम पक चुके हो
समय की आग में और
बन चुके हो फिर इंसान!
खोज रहे हो अपने धरातल को
स्वच्छ हवा पानी के घर को
कौन समझाए तुम्हें अब कैंसे
संभालोंगे इस भू तल के सौन्दर्य को।
स्वच्छ हवा पानी के घर को
कौन समझाए तुम्हें अब कैंसे
संभालोंगे इस भू तल के सौन्दर्य को।
तुम फिर चक्रव्यूह में उतर रहे हो
अर्जुन नही अभिमन्यु बन रहे हो
कर्त्तव्य नही कौशल जरूरी होता है
जीवन का क्या ये पल-पल में रोता है।
अर्जुन नही अभिमन्यु बन रहे हो
कर्त्तव्य नही कौशल जरूरी होता है
जीवन का क्या ये पल-पल में रोता है।
थक चुके हो सोच लो फिर, वक्त है
वक्त की दौड़ में वक्त ही कुचलेगा
स्वार्थ पीड़ा ने ठगा है फिर तुम्हें,
प्रकृति, पर्यावरण और पलायन को बदनाम मत कीजियेगा। @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी
वक्त की दौड़ में वक्त ही कुचलेगा
स्वार्थ पीड़ा ने ठगा है फिर तुम्हें,
प्रकृति, पर्यावरण और पलायन को बदनाम मत कीजियेगा। @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी
Monday, June 12, 2017
Wednesday, December 14, 2016
रफ्तार
रफ्तार दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है,
देखो! गाँवों की ओर सड़कों की
और शहरों की ओर लोगों की।
रफ्तार दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है,
देखो! गाँवों की ओर अपराधों की
ओर शहरों की ओर संस्कृति की।
रफ्तार दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है,
देखो! गाँवों की व्यापार की,
शहरों की और बेरोजगार की।
रफ्तार दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है,
देखो! गाँवों की ओर विश्वास की,
शहरों की ओर अविश्वास की।
रफ्तार दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है
देखो! गाँवों की ओर विनाश की
शहरों की ओर विकास की ।
रफ्तार दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है,
देखो! शहरों की ओर इंसानियत की,
गाँवों की ओर हैवानियत की।
रफ्तार दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। @ - पंक्तियाँ, सर्वाधिकार, सुरक्षित, राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
गाँव
बुढा हो चला है
क्यों लौट रहे हो
बर्षों बाद आँखों में
आँसू लिए किसको
ढूंढ रहे हो।
गाँव
बुढा हो चला है
तुम भी घुटनों पर
उठ कर गिर रहे हो,
फिर आज यूँ क्यों
लड़खड़ाते हुये
कदम वापस बढ़ा रहे हो।
गाँव
बुढा हो चला है
वो भूल चुका है तुम्हें
तुम भी भूल चुके थे
किसके लिए तुम
पत्थर रख हृदय में
यूँ वापस आ रहे हो।
गाँव
बुढा हो चला है
अशिक्षित है मगर
अपनी मातृभाषा को
पहिचानता है
तुम तो विदेशी भाषाओँ के
बादशाह बन बैठे थे
फिर क्यों लौट आये। @ - सर्वाधिकार सुरक्षित, राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
Friday, July 29, 2016
Subscribe to:
Posts (Atom)
मशरूम च्युं
मशरूम ( च्युं ) मशरूम प्राकृतिक रूप से उत्पन्न एक उपज है। पाहाडी क्षेत्रों में उगने वाले मशरूम।
-
मशरूम ( च्युं ) मशरूम प्राकृतिक रूप से उत्पन्न एक उपज है। पाहाडी क्षेत्रों में उगने वाले मशरूम।
-
तिमला (Timla) आम (Aam) सेब (Seb) Apple आरु (आडू) Aadu शहतूत (Shahtut) मोलू (Mili...
-
यदि आप गूगल, फेसबुक या सोशियल मीडिया के अन्य प्लेटफॉमों का उचित उपयोग करते हैं तो क्या नही मिल सकता है। बस मन में सदैव कुछ नया सीखने की चाह ...