Friday, June 26, 2015

'यूँ तो हम पत्थर हैँ'


यूँ तो हम पत्थर हैँ राह मे
और रेतीली राह के स्तंभ हैँ
चेतन जगत की बात हो जब
पल-पल बदलते मौसम हैँ ।
किसी की ठोकर बन गये
बन गए किसी की पतवार
किसी ने यूँ रौँदा राह तले
बिखर गए जलते से अंगार ।
यूँ तो हम पत्थर हैँ राह मे
डुबते हुए अश्को से निकले
सीख ले कोई हम से चलना
पल-पल यूँ आँख न मिचले ।
किसी ने लहरों मे भी छोड़ा
किसी ने मिट्टी मे दफनाया है
जिनकी नजरों ने चुबोए थे काँटे
उनकी आँखों ने ही अपनाया है ।
यूँ तो हम पत्थर हैँ राह मे । - गीत @ सर्वाधिकार सुरक्षित एवं पूर्व प्रकाशित - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Friday, February 6, 2015

बदल रही हैँ रूख हवाएँ
बादल आने जाने हैँ
बढ़ते रहो तुम राह पर अपने
मौसम सब बेगाने हैँ ।
जाने कितनी ठोकर आएँ
पल पल यूँ तुम गिर भी पडोगे
रूकना नही है तुमको फिर भी
यूँ ही एक दिन शिखर चढोगे ।
बदल रही हैँ रूख हवाएँ
बादल आने जाने हैँ
बढ़ते रहो तुम राह पर अपने
मौसम सब बेगाने हैँ ।
कभी बिखरेगा विश्वास तुम्हारा
मिलता रहेगा एहसास दूवारा
तुम गति को अपनी रोक न देना
बहती धारा मे झोंक न देना ।
बदल रही हैँ रूख हवाएँ
बादल आने जाने हैँ
बढ़ते रहो तुम राह पर अपने
मौसम सब बेगाने हैँ ।
संकट तुमको मिलेगा जो
उस संकट के लिए तुम खुद संकट हो
इस धरती पर जीता वही है
इसान्यित जिस पर प्रकट हो ।
बदल रही हैँ रूख हवाएँ
बादल आने जाने हैँ
बढ़ते रहो तुम राह पर अपने
मौसम सब बेगाने हैँ । रचना @ सर्वाधिकार, सुरक्षित - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
कोई कहता आतंकी है
कोई उन्मादी बताता है
कोई भगोडा कहता उसको
कोई चंदा चोर बताता है ।
देश का मुख्या उतर सड़क पर
क्यों इतना भय खाता है
ताकत कदमों मे है उसकी
तभी सरकार हिलाता है ।
कोई कहता आतंकी है
कोई उन्मादी बताता है
कोई भगोडा कहता उसको
कोई चंदा चोर बताता है ।
कितनो ने छिनी रोटी हमारी
कितनो ने जन धन लुटे हैँ
बैठे हैँ जो संसद मे
उनके कितने मुखोटे है
आन पड़ी है अब सामत उनकी
एक एक कर सब घायल हैँ
विकासवादी भी भूल विकास को
नाच रहे बिन पायल हैँ ।
कोई कहता आतंकी है
कोई उन्मादी बताता है
कोई भगोडा कहता उसको
कोई चंदा चोर बताता है ।
पुलिस प्रशासन पग पग बाधा
भारत भूमि की मर्यादा है
स्वराज का नारा देने वाला
ये स्वराज तेरा कुछ ज्यादा है ।
कोई कहता आतंकी है
कोई उन्मादी बताता है
कोई भगोडा कहता उसको
कोई चंदा चोर बताता है । @ रचना - सर्वाधिकार, सुरक्षित, राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Wednesday, February 4, 2015

राष्ट्र किया जिन्हें समर्पित 
वे जन सेवक क्या चाहाते हैँ 
झूठा है केजरिवाल फिर क्यों 
केजरिवाल से इतना घबराते हैँ 
तन क्षीण हुए इन सब के अब 
खाली संगठित का ढोंग रचाते हैँ
राष्ट्र किया जिन्हें समर्पित
वे जन सेवक क्या 
चाहाते हैँ ।
देख पग कोमल केजरी के
हर रोज काँटे बिछाते हैँ
खरोच खुद पर जब आती है
जन सेवक बन आँसू बहाते हैँ
राष्ट्र किया जिन्हें समर्पित
वे जन सेवक क्या 
चाहाते हैँ । 
खुद की ताकत को अपनी
हर रोज आँधी बताते हैँ
पतंगे बन के न जल जाएँ
भय
 इतना  केजरी से खाते हैँ 
राष्ट्र किया जिन्हें समर्पित
वे जन सेवक क्या 
चाहाते हैँ । @ रचना -सर्वाधिकार, सुरक्षित - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Tuesday, February 3, 2015

मन का पंछी तैँ 
उड्ण द्या ज्याण द्या 
कथ्गा उड्लो देख्णा रा
देख्णा रा तुम देख्णा रा 
मंन का पंछी तैँ 
खाली ग्दरियोन् 
भ्रमान्दू पोथ्लू सी 
ज्याण द्या देख्णा रा 
देख्णा रा तुम देख्णा रा 
मंन का पंछी तैँ 
मन का पंछी तैँ 
उड्ण द्या ज्याण द्या 
कथ्गा उड्लो देख्णा रा
देख्णा रा तुम देख्णा रा 
मंन का पंछी तैँ 
बान्धण कैन च 
कैमु इथ्गा टैम च
मंन का पंछी तै 
मन का पंछी तैँ 
उड्ण द्या ज्याण द्या 
कथ्गा उड्लो देख्णा रा
देख्णा रा तुम देख्णा रा 
मंन का पंछी तै । @ गीत - सर्वाधिकार, सुरक्षित, राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Sunday, February 1, 2015


यू आँसू आँखों भीटी टप टप,

टपकुदु रै यू सदानी 

दुःख आ होलू सुख आ होलू 

कैन जाणी कैन पछाणी 

यू आँसू आँखों भीटी टप टप,

टपकुदु रै यू सदानी l गीत @ सर्वाधिकार, सुरक्षित - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 


Monday, January 12, 2015

संकुचित हो कर रह गये मेरे शब्द, 

बिखर कर कहाँ अब घर मिलेगा, 


पीड़ा हो जिसमें हर मौसम की,

 
उस आँगन मे अब फूल खिलेगा । @ - पंक्तियाँ सर्वाधिकार, सुरक्षित - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'



मशरूम च्युं

मशरूम ( च्युं ) मशरूम प्राकृतिक रूप से उत्पन्न एक उपज है। पाहाडी क्षेत्रों में उगने वाले मशरूम।