Friday, November 21, 2014

खबर प्रशासन को सबकी है मगर,


कुछ चेहरे अखबार में उतारे जा रहे हैं l 


जो नेताओं पर हावी होते जा रहे हैं


वही लोग आजकल तलासे जा रहे हैं l @ राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 


Tuesday, November 18, 2014

तुम तो फिर,
चले आए सूरज ! 
उसी पथ पर,
जहाँ तुमने
बिखेरा अंधेरा । 
संभाल कर,
तलाश कर,
लाएँ हो
फिर वही सबेरा ।
तुम तो फिर,
चले आए सूरज ! - रचना सर्वाधिकार, सुरक्षित - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'



Saturday, November 8, 2014

बंद कर दो पढना इन हाथों की लकीरों को,
हर चहरे से आजकल रईशी झलकती है l - सर्वाधिकार सुरक्षित  @ राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 


Friday, October 10, 2014

बिपदा मा च देव भूमी

बिपदा मा च देव भूमी

हर क्वी डरयूँ च

बदरी केदार भूमियाळ अपणु

देखा कन छुप्पयूँ च ।

नन्दा राज राजेश्वरी

कख नरसिंग लुक्यूँ च

धुर्पाळ्योन् कू देब्ता आज

खन्द्वार दब्यूँ च ।

बिपदा मा च देव भूमी

हर क्वी डरयूँ च

बदरी केदार भूमियाळ अपणु

देखा कन छुप्पयूँ च । @ गीत - सर्वाधिकार सुरक्षित राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Monday, October 6, 2014

''मेरी कलम''


अक्सर जब अवसादों से घिरा मै, 

रूकता हूँ एक चलते पथ पर, 

सिमट कर मेरी उँगलियों मे कलम,

खिँच ले जाती फिर नये सफर पर ।  - रचना

सर्वाधिकार, सुरक्षित राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी

#कलम  #सफर 


Wednesday, October 1, 2014

''बढो आगे बढो''

बढो आगे बढो 

रूको मत चलते चलो 

पहिचानो उस सामर्थ्य को 

जो हृदय और मस्तिष्क पर 

चहलकदमी कर रही है ।

उतार दो उसे पथ पर 

चढ़ने मत दो उसे रथ पर 

स्वप्न संसार मे दौड़ने से 

बोलो भला क्या मिलेगा । रचना - सर्वाधिकार, सुरक्षित राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी

Sunday, September 28, 2014

कोई भीख लेता है कोई भीख मांगता है, 
है भिखारी कौन ये कोई नहीं जनता, 
कोई महलों से फैलाता है हाथ अपना,
बटोरते हैं कोई चौराह से सपना 
फर्क बस रंग का है दोस्तों 
कोई काले कलूटे फटे बस्त्र समेटे 
कोई लहराता गेरुवा और खाकी भेष में 
देखो सूरमाओं का छुपा चेहरा मेरे देश में 
कोई भीख लेता है कोई भीख मांगता है, 
है भिखारी कौन ये कोई नहीं जनता l -रचना @ राजेंद्र सिंह कंवर 'फरियादी'

मशरूम च्युं

मशरूम ( च्युं ) मशरूम प्राकृतिक रूप से उत्पन्न एक उपज है। पाहाडी क्षेत्रों में उगने वाले मशरूम।