Saturday, July 26, 2014

कुछ लेखनियाँ घायल है कुछ खामोश हैं,  

बैठी सारकार जिनकी गोद में वो मदहोश हैं l - रचना सर्वाधिकार सुरक्षित - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

Thursday, July 24, 2014

उँगलियाँ

हर जगह हर मंच पर
मंडराती नजर आती हैं
ये तेरी उँगलियाँ l

किसी खोजी पत्रकार की तरह
हर बार बेद जाती हैं 
ये तेरी उँगलियाँ l

मिटटी पानी धरा मानव की क्या बात करूँ मैं
उस मनोहारी चाँद तक जा पँहुची
ये तेरी उँगलियाँ l

क्या छूटा इन से आजतक
पाक गीता कुरान तक भी जा पँहुची
ये तेरी उँगलियाँ l


कब कहाँ किसने की रोकने की
कोशिश और कौन रोक पाया
ये तेरी उँगलियाँ ! -रचना -सर्वाधिकार सुरक्षित राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'



Thursday, July 3, 2014

मेरे कदमो की आहाट से अब उनको डर लगने लगा,
जो कभी मेरे इन्तजार में आँखें बिछाए रहते थे l 
वही अब दिन-रात बेचैन रहते हैं अपने सपनों से ,
जो कभी छुपाये अपने ख्वाबों में हमें रहते थे l @ राजेंद्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

Saturday, June 21, 2014

मैं तो घर ही ढूढने निकला था शहर में पर,

कई माकन मिले हैं मेरे साथियों के सफ़र में,

आँगन भी कुछ यूँ भरे थे गाड़ियों से,

और सिमटी हुई एक ओर मेरी खटिया पड़ी थी !! @ राजेंद्र सिंह कुँवर 'फरियादी'


Wednesday, May 28, 2014

बिसरी कबार छ यू मन्खी 
डांडी कांठी डाली बौटली 
सुख का खातिर गै छ आपणा 
सुख का खातिर औणु बौडी 
अजी क्या बोना छाँ होवैगी विकास 
बांजी पुन्गुडी बौंण उदास l - गीत सर्वाधिकार सुरक्षित राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'



Wednesday, May 7, 2014

यूँ डांडी कांठियों कु सुख ठुकरै तै,
पिली बणी छन मुखुडी हफार,
जुकुड़ीकु खोज्णा सुख निकल्यी छा  
आंखी बथौणी हौग्या बीमार l  गीत @ राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'  

   

Tuesday, May 6, 2014

चंपा के फूलों की भीनी भीनी महक,

आज भी फैलती है मेरे घर गाँव में, 

कुदरत ने दिया है हमें ये अनमोल तोफा,

हम भी खेले कूदें हैं चंपा की छाव में l @ राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 


 



मशरूम च्युं

मशरूम ( च्युं ) मशरूम प्राकृतिक रूप से उत्पन्न एक उपज है। पाहाडी क्षेत्रों में उगने वाले मशरूम।