Tuesday, April 29, 2014

जिगर में बैठ कर ढून्ढते रहे आशियाना वर्षों तक, 

और एक लौं के बुझते ही न जाने क्यों बिखर गए,  

यूँ तो सपने हर कोई देखता है हर बार चाँद के, 

छत से भी देखने को मिल जाय तो नसीब समझिए l कॉपी राईटस @  राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'  

ये ऊँगली कमाल की है

जिनको थामने के लिए कोई आगे नहीं बढ़ा कभी, 

उन्ही की तलास में आजकल बहुत घूम रहे है l 

लेकर नोट कोई कोई मदिरा में झूम रहे हैं,

हाल ये है अब बस्तियों का हर कोई ऊँगली चूम रहे हैं l @राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'


Thursday, April 24, 2014

आगि डाल्यौं पर मौल्यार देख बसंतकु हुलार,


कन नाचणु च पात्ग्यौं मा, देख डाल्यौं कु मौल्यार l

 @ गीत राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'


Friday, April 18, 2014

आज नफरतों से ज्यादा दर्द मोहबतें देती है 

जुवाने लडखडाती हैं सदा आँखें कह देती है l  @ राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 










उडती आंधियां अब इंसानियत सिखा रही हैं ,

फैला के पंख खुद को आसमा बता रही हैं l @ राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

Wednesday, April 16, 2014

गीत

धुँआ जलते जिगर का देखते है कहाँ कब किसी ने,

अँगार सा जलता है ये और लोग देखते हैं पसीने,

जख्म इतने है बने विन खंजर के इस तन पे,

एक एक को कुरेदा है हर एक सदी ने ! गीत @ राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'  









लुटे हैं कई बार

डूब गया है मेरा भारत देखो चंद चेहरों में,

बिखर गया यहाँ का इंसान चुनावी घेरों में,

लुटे हैं कई बार बच बच के अपनों से, 

फंसे हैं  हर बार सागर सी लहरों में l  रचना @ राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

मशरूम च्युं

मशरूम ( च्युं ) मशरूम प्राकृतिक रूप से उत्पन्न एक उपज है। पाहाडी क्षेत्रों में उगने वाले मशरूम।