Wednesday, April 16, 2014

गीत

धुँआ जलते जिगर का देखते है कहाँ कब किसी ने,

अँगार सा जलता है ये और लोग देखते हैं पसीने,

जख्म इतने है बने विन खंजर के इस तन पे,

एक एक को कुरेदा है हर एक सदी ने ! गीत @ राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'  









लुटे हैं कई बार

डूब गया है मेरा भारत देखो चंद चेहरों में,

बिखर गया यहाँ का इंसान चुनावी घेरों में,

लुटे हैं कई बार बच बच के अपनों से, 

फंसे हैं  हर बार सागर सी लहरों में l  रचना @ राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Sunday, December 29, 2013

हाइकु

भारतवर्ष 

फिर जागा ये देखो  

नया तूफान ! 

रंग बदले  

सब चेहरे देखो

कुछ तो लुटा !! 

ठंडी हवा सा 

फैलता कोहराम 

आज सिमटा !!!

गरमाई है 

कुछ धूप में अब 

तूफान कहाँ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'



Thursday, December 19, 2013

खोपड़ी कु बथौंऊँ

गैणों पर तेरी नजर

चाँद पर तू उतरिगे

क्या बिगाड़ी ईं धर्तिन

मन मा जरा सोच लें 

गैणों पर तेरी नजर..........

क्या भाग्दी ईथ्यं  उथ्यं 

बैठिक तू सोच ली 

खोपड़ी मा उठियुं बथौंऊँ 

हे जुकुडी तू रोक ली - गीत - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'


Thursday, October 24, 2013

पूछा रे पूछा पूछा (Puchha re Puchha Puchha)

दानी सयांणी आन्ख्यों छणी 
पूछा रे पूछा पूछा 
कख भीटि आई बथौं बणिक 
यू रीति रिवाज कैकू च 
यूँ दानी सयांणी आन्ख्यों छणी ! 
दानी सयांणी आन्ख्यों छणी 
पूछा रे पूछा पूछा
नौउ विकाश कु ली तै चल्णु 
कैकी खूटियों न हिटणु च 
हरी भरीं कांठियों मा मेरी 
विष बनिक रिटणु च 
पूछा रे पूछा पूछा 
यूँ दानी सयांणी आन्ख्यों छणी ! 
दानी सयांणी आन्ख्यों छणी 
पूछा रे पूछा पूछा 
भेल्य बिटौमा मोटर आगि 
मन्खी यख भीटी भाग्णु च 
गौ गुठ्यारू सब मुर्झागी शहर
हफार हैसणु च 
पूछा रे पूछा पूछा 
यूँ दानी सयांणी आन्ख्यों छणी ! 
दानी सयांणी आन्ख्यों छणी 
पूछा रे पूछा पूछा 
आई कख भीटि बथौं बणिक 
यू रीति रिवाज कैकू च
गौं गैल्यी पुस्तैनी
मिटी गैनी आज  
डामूका खातिर खुदेंन यी पाखी
निर्भागी पाणीन कु बिकरालअ रूप
बाबा केदार भी नि संभाल सकी  
पूछा रे पूछा पूछा 
यूँ दानी सयांणी आन्ख्यों छणी ! 
दानी सयांणी आन्ख्यों छणी 
पूछा रे पूछा पूछा 
आई कख भीटि बथौं बणिक 
यू रीति रिवाज कैकू च
गैल्यी पुस्तैनी मिटी गैनी आज  
डामूका खातिर खुदेंन यी पाखी
निर्भागी पाणीन कु बिकरालअ रूप
बाबा केदार भी नि संभाल सकी   – गीत - राजेन्द्र सिंह कुँवर ‘फरियादी'






Wednesday, September 25, 2013

मैं पत्थर हूँ (main patthar hun )


मंदिर में रख दो मुझको, 

या ठुकरा दो चौराहों पर l

मैं पत्थर हूँ पत्थर ही रहूँगा,

हे मानव मुझे गुमराह न कर ll

संवार कर यूँ न रख मुझे,

मैं सारे जहाँ का ठुकराया हूँ l

हंस कर रो न पाउँगा फिर,


मैं पल पल का सताया हूँ ll -  रचना – राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी’


Thursday, September 12, 2013

कलम की गुस्ताखियाँ

कैंसे गुनगुनाऊ उन निगाहों के निशानों को,

जिनकी दरगाह सजी ह्रदय के मकानों में है !

दोष दूँ तो कैंसे उन अँधेरे चिरागों को मैं,


जो रौशनी की लौ बनके मुझे राह दिखाती हैं ! - कॉपी राईट @ राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'



मशरूम च्युं

मशरूम ( च्युं ) मशरूम प्राकृतिक रूप से उत्पन्न एक उपज है। पाहाडी क्षेत्रों में उगने वाले मशरूम।