Friday, May 31, 2013

कम्प्यूटर युग में हमारी भाषा का आधार किराये का मकान है

इस कम्प्यूटर युग में हिंदी की स्थिति पर असमंजस्य ज्यूँ का त्यूं बना हुआ है, कुछ लोगों की मजबूरी के कारण विकाश हुआ फौंट सिस्टम और ट्रांसलेशन टूल्स का ..........क्या आप जानते है आज के कम्प्यूटर युग में हिंदी का अपना कोई ठिकाना नहीं है वो किराये के मकान में रहती है हाँ ये सच है कि एक अच्छे किरायेदार के रूप में उसने अपने आप को स्थापित कर लिया है .................ये बात सिर्फ और सिर्फ हिंदी के लिए ही नहीं अपितु विश्व की तमाम अन्य भाषाओं के लिए भी है अंग्रेजी को छोड़कर ......सब की भूमिका एक किरायेदार की है .............(अन्तर्जाल) अन्तर्राष्ट्रीय कम्प्यूटर तन्त्र पर सिर्फ और सिर्फ इंग्लिश का ही बोलबाला है ............जिसप्रकार बी. सी. सी. आई. ने हमारे देश के क्रिकेट को जकड रखा है उसी प्रकार (WWW) वर्ल्ड वाईड वेब ने सम्पूर्ण भाषाओँ को जकड रखा है...................भाषा के क्षेत्र में ये बहुत ही ज्वलंतसिल मुद्दा है मगर हमारी सरकारें और भाषा विभाग इस पर अपना ध्यान केन्द्रित नहीं करना चाहते हैं ......हो सकता है यहाँ पर भी भाषा की कोई फिक्सिंग हो रही हो


आप इस पंक्ति को देखिये ................इन्टरनेट पर एकमात्र स्थान जहाँ पर आपको हिंदी के वेब एड्रेस मिलतें हैं ।
Here you will be able to find links to all popular websites which have Hindi content.

मगर आधार देखिये इसका भी अंग्रेजी है सिर्फ फौंट सिस्टम और ट्रांसलेशन टूल का फायदा हिंदी को मिल रहा है ..................आप क्या कहते हैं क्या हमारी भाषाएँ आपना आधार स्थापित नहीं कर पाएंगी या स्थापित करने की कोशिश ही नहीं की गयी है


Wednesday, May 29, 2013

कन मा भुलअला


द्नकण ल्ग्ज्ञाछीन नान्नी ख्यूटीयोंन  
जुकड़ी मा बांधिक पापी पीड़ा
भुलअला भी त कनकै क भुलअला
आन्ख्यों मा आंसू समाल्य्धिक !  
चुबुणु रल्लू यु याद कु कान्डू
घंतुलियों की तीस कन कै बुझअला
मुखुडी की रौनक त छूपाई भी जांदी
क्यूँकाल्यु सी बाडूली कन मा भुलअला !
द्नकण ल्ग्ज्ञाछीन नान्नी ख्यूटीयोंन 
जुकड़ी मा बांधिक पापी पीड़ा
भुलअला भी त कनकै क भुलअला
आन्ख्यों मा आंसू समाल्य्धिक ! 
शहरु की चकाचोंद मा
बिसरी भी जाला त
जुकुड़ी कु डाम कन कै मीटैला
जग्दु अंगार सी सुल्गुणु रंदू जू
तै आग तै कन मा !
अदाण कु ऊमाल्द सी बार बार अलू
भाड पौंअण सी तुम कन मा बचौला
जुकड़ी मा बांधिक पापी पीड़ा
भुलअला भी त कनकैक भुलअला ! – गीत – राजेन्द्र सिंह कुँवर ‘फरियादी’


  

Thursday, May 23, 2013

मैं नीम ही हूँ


मैं नीम हूँ देखा है मैंने भी
धरती पर उगता जीवन
खिल खिलाती हंसी
और महकता उपवन !
कहूँ क्या मैं किस कदर
आज उलझा हुआ हूँ,
अपने ही कडवेपन से
खुद से कितना खपा हूँ !
अब किसको चाह है मेरी,
मैं खुद ये सोचता हूँ,
साबुन मंजन सब मेरे ही है,
मैं खुद को क्यों कोसता हूँ !
न खेतों पर अब पगडण्डी हैं,
न घर पर चार दिवारी,
न अम्माएं अब कथा सुनती
न मिलती बच्चों की किलकारी !
अब झुरमुट चिड़ियों का लेकर,
वो भोर कहाँ आता है,
थका हारा है हर ओर मानव
पग पग पर ये बिखर जाता है !
खो कर जीवन सहज अपना
रख कर पत्थर हृदय पटल पर
सभ्यता की दौड, दौड़ रहा
हो कर कैद समय रथ पर ! – राजेन्द्र सिंह कुँवर ‘फरियादी’





Thursday, May 16, 2013

माँ


प्रकृति बदल गयी मानव की,
माँ का रूप भी बदल गया !
बेटा वारिस माँ की नजरों में,
बेटी का खुद घोट रही गला !!

माँ की नजरों की ममता,
उस पंछी सी फिरती है !
छोड़ कर नीड अपनी,
खुद उलझन में घिरती है !!

अपनी क्षणिक खुशियों के लिए,
रख लेती पत्थर हृदय पटल पर !
आखिर क्या मिलता है उसको,    
एक माँ से माँ यूँ कत्ल कर !!

माँ की ममता के इस रूप ने,
स्वरुप जहाँ का बदल दिया !
एक माँ ने माँ का ही हक़ लुटा,
स्वयं माँ ने माँ को यूँ प्रस्तुत किया !!  - राजेन्द्र सिंह कुँवर ‘फरियादी’ 



Sunday, May 5, 2013

एक लौ तो जला के देखो


उजाला खुद बिखरेगा तुम,

ज्योति जला के देखो !

पग पग पर रुकना भी पड़ेगा,

एक कदम बढ़ाके देखो !

बहुत कुचले है सर राह में,

एक बार सर उठा के देखो !

रोकेगा खुद तुम्हें तुम्हारा ‘हौसला’

एक इरादा खुद पे जाता के देखो !

चिंगारियां कई दिखेंगी रौशनी में,

तुम एक लौ तो जला के देखो !

कई चौराह मिलिंगे राह में

तुम एक राह तो बनाके देखो !

आवाजे कई मिलेंगी साथ में

तुम एक आवाज उठा के देखो ! - रचना – राजेन्द्र सिंह कुँवर ‘फरियादी’ 



Monday, April 29, 2013

कनु रूप धारियुं च युन्कू

नजर कुसांगी खोजदी खोजदी,
अपणी गौं की पुंगडीयौ तै
अंखियों मा कांडा सी चुभणा छन्,
देखिक यूँ कुड्डीयौ तै ! 

जौं मंखियों का खातिर,
गौं मा मोटर आयी,
बदलिगे मिजाज तौंकू,
अपणों छोड़ी चली ग्याई !
यूँ साग सग्वाड़ीयों तै
कैं जुकड़ी बिट्टी ठुकरैगे,
क्या उपजी होलू मतिमा तैउंकू,
की निर्भागी रुसांगे !
निर्भागी रुसांगे ! निर्भागी रुसांगे !
निर्भागी रुसांगे ! निर्भागी रुसांगे !   
नजर कुसांगी खोजदी खोजदी,
अपणी गौं की पुंगडीयौ तै !!
अंखियों मा कांडा सी चुभणा छन्,
देखिक यूँ कुड्डीयौ तै ! 

गौं भिट्टी उक्ल्यी कु बाटू,
गौं कु पंधेरों सी नातू
जाणी कख ख्वैग्यायी,
आपणों की बणायीं सगोड़ी टपरान्दी रैगे,
धुर्प्ल्याकु द्वार टूटयूँ उर्ख्याली ख्वैगे !
नजर कुसांगी खोजदी खोजदी,
अपणी गौं की पुंगडीयौ तै
अंखियों मा कांडा सी चुभणा छन्,
देखिक यूँ कुड्डीयौ तै !  - गीत – राजेन्द्र सिंह कुँवर ‘फरियादी’



मशरूम च्युं

मशरूम ( च्युं ) मशरूम प्राकृतिक रूप से उत्पन्न एक उपज है। पाहाडी क्षेत्रों में उगने वाले मशरूम।