ह्रदय के उदासी आलम से,
कविता का जन्म होता है !
लोग पढ़ वाह वाही करते हैं,
हृदय बादल सा रोता है !
आँखों से निकलता ही नहीं नीर,
और कई पीर एहसासों में बह जाते हैं !
कोई बोलना ही नहीं चाहता मन की,
और शव्द फिर भी कह जाते हैं !
मगर दीखता है किस को ये,
लोग पढ़ कर चले जाते हैं !
शव्द हँसते हैं हमारे हमी पर,
हम को रोज़ चिढाते हैं !
मन की घुटन कहाँ दफ़न करें अब,
हर रोज़ शव्दों पे चिता लगाते हैं ! ........ रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'