कदम खुद ही चलते है
अँधेरे के निशा ढूंढ़ने !
रोक न पायें जब खुद को,
हम अँधेरे को क्यों दोष दें !
उजाला हर किसी की ओढनी,
हम अँधेरे को ही ओढलें !
उजालों ने थकाया हमें
निगाहों ने लुटाया हमें !
क़दमों ने भी पकड़ी वही राह,
फिर रास्तों को क्यों हम दोष दें !
मुस्कुराता है वो चाँद भी,
अँधेरी ही राह पर,
फिर जगमगाते तारों को,
हम क्यों दोष दें ! .........रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
अँधेरे के निशा ढूंढ़ने !
रोक न पायें जब खुद को,
हम अँधेरे को क्यों दोष दें !
उजाला हर किसी की ओढनी,
हम अँधेरे को ही ओढलें !
उजालों ने थकाया हमें
निगाहों ने लुटाया हमें !
क़दमों ने भी पकड़ी वही राह,
फिर रास्तों को क्यों हम दोष दें !
मुस्कुराता है वो चाँद भी,
अँधेरी ही राह पर,
फिर जगमगाते तारों को,
हम क्यों दोष दें ! .........रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'