Wednesday, July 18, 2012

मेरा पहाडू

न टपकौउ तौं आंसूं तै 
निर्भागी जुकड़ी मा चुभी जांदा 
घंतुलियों मा समाली खुद
दुनिया कै क्यांकू दिखौन्दा
लगली खुद तब ऊं तै जब ठोकर खौला
कपाली खुज्लंदी तब तैमु ओला,
समुण समाल्यी रखी गाड गदनियों तै
सव्द्येउ ल्गाणु रही काफू हिलांस तै
बणु की घस्यरी नि दिखेंदी,
न ग्वारै छोरों की बांसुरी रै
न टपकौउ तौं आंसूं तै
निर्भागी जुकड़ी मा चुभी जांदा
घंतुलियों मा समाली खुद
दुनिया कै क्यांकू दिखौन्दा ........! गीत - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'



Tuesday, July 3, 2012

बनू तो क्या बनू

न पास मेरे धन दौलत है,
न जनमत का भंडार। 
सिमित चंद इरादे हैं, 
जीवन जीने का आधार 
न राही मिला कोई अपना, 
न मंजिल पर दीखता है 
निकलता हूँ जिस गली पे 
हर कोई वहां बिकता है 
फिर बनू तो क्या बनू ........
सपनो के सुनहरे पथ पर,
अपने राह रोके मिलते हैं  
फूल वही मन हर्षाते सबका,
काँटों में जो खिलते हैं 
फिर बनू तो क्या बनू ........
कोयला भी आग में ताप कर,
रंग नहीं बदलता है 
संघर्ष पथ पर जलता सूरज 
यूँ तो हर रोज निकलता है
फिर बनू तो क्या बनू ..... ।  ....रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'




Thursday, June 21, 2012

सभ्यता



क्या करें इस सभ्यता का,
इंसानियत को निगले जो जा रही है !
लूट कर सुख चैन, विषाद  का,
दीपक जो जला रही है !
हर ओर घना कोहरा है इसका,
सुख का क्षण कहीं दीखता है क्या .....?
कहाँ इंसानियत मानव के अन्दर,
पग - पग पर देखो विकता है क्या ..?
पानी प्यास मिटा नहीं सकता,
भूख को अनाज लुभा नहीं सकता !
धन दौलत के अम्बार भी देखो,
कुदरती नींद दिला नहीं सकता !
बहती नदियों को सुखा गयी,
अडिंग हिमालय को हिला गयी !
क्या संतोष मिला इस मानव को,
कदम - कदम पे देखो रुला रही !
छोर छुड़ाकर धरती का,
ले उडी मानव को चाँद की ओर !
मानवता को बाँध रही है,
प्रलोभन की ये विषैली डोर ! 
फ़ैल रहा उन्माद धरा पर,
अब रुकने का कहीं नाम नहीं !
मानव के हृदय में अब,
मानवता के लिए दाम नहीं .......... रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

युग बदल रहा है



राजा चौधरी का गया जमाना,
आज तो नेता अभिनेता का है !
कल फिर किसका होगा यारों,
ये हिंद फिर करवट लेता है !
गाँधी जी को सब भूल गए,
भूल गए झाँसी की ज्वाला को ! 
बीर भगत को भूल गए,
भूल गए राणा के भाले को !
हो संतान तुम भी इसकी,
यही वो भारत माता है !
जब - जब संकट आये हम पर,
तब - तब की अनोखी गाथा है ! 
दैंत्यो का  जब अत्याचार बढा,
राम रूप में अवतार मिला !
गोरों ने चाह जब लूटना,
हिंद को एक नया विस्तार मिला !
असत्य सत्य पर जब था हावी,
हर हिंद वासी था  गंभीर !
कृषण रूप में तारणहार मिला,
उभरी थी एक उज्जवल तस्वीर !
लगता है अब हिंद की,
फिर वही तैयारी है !
जो अत्याचार फैला रहे हैं,
अब उन नेताओं की बरी है ! .........रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 




Tuesday, June 19, 2012

हर राह पर पर शिखर हैं

बिखरी पड़ी इन राहों को मैं 
पहचान लेता हूँ !
कभी - कभी चल के दो कदम 
इन से ज्ञान लेता हूँ !
पूरव पशिचमी उत्तर दक्षिण हर ओर शिखर है 
ये जान लेता हूँ !
सब पर चलना आसन नहीं है 
ये मान लेता हूँ !
बिखरी पड़ी इन राहों को मैं 
पहचान लेता हूँ !
कभी - कभी चल के दो कदम 
इन से ज्ञान लेता हूँ !
सागर सी गहराई है, पहाड़ सी परछाई है,
जीवन के इस डगर, मिलती हर कठिनाई है 
मगर मैं ठान लेता हूँ !
बिखरी पड़ी इन राहों को मैं 
पहचान लेता हूँ !
कभी - कभी चल के दो कदम 
इन से ज्ञान लेता हूँ !  ..........रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'



Monday, June 18, 2012

देखा देखा देखा

देखा देखा देखा तुम, 
फरका पिछाड़ी
यूँ रुपयों की दौड़ मा
कुड़ी छोड्याली
बन्गिन अपणा
इथ्गा पराया
कन बसी तेरी जुकड़ी मा
अभागी या माया
देखा देखा देखा तुम,
फरका पिछाड़ी
यूँ रुपयों की दौड़ मा
कुड़ी छोड्याली
नानि खूटियों का कदम अब
बडगिन अग्वाड़ी
देखा देखा देखा तुम,
फरका पिछाड़ी
यूँ रुपयों की दौड़ मा 

कुड़ी छोड्याली .........गीत - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'





Friday, June 8, 2012

यखुली यखुली


मन्खियों कु डिमडियाट नि
पोथ्लोउन कु छिबडाट नि
यखुली यखुली तुमारी खुद मा
कन यु विचारू अंगण गुठीयार च
धार खाल्यु मा डांडीयौं का बिच
गाड गदरियों मा पन्देरी नि च
पुंगडी उदास होईं सारियों बिच
कख गै यु मन्खी खबर नि च
दूध की अकाल होईं गौं खालु बजार
दारू देख विक्नू यख बानी बानी की धार
स्कुलु मा मास्टर निन पट्टियों मा पटवारी
शहरु मा घुम्णी छन बौंणु की घस्यारी
बकरोंल्यु भी मगन होऊं च
बखरों छोड़ी ठेका जायुं च
हाथ की लाठी खोय्गी अब
देखा बिचाराकु पवा थामियुं च ...........गीतकार -.राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
 






मशरूम च्युं

मशरूम ( च्युं ) मशरूम प्राकृतिक रूप से उत्पन्न एक उपज है। पाहाडी क्षेत्रों में उगने वाले मशरूम।