Thursday, May 17, 2012

ऑंखें 

इन आँखों के सामने से निकलता है सबेरा 
इन आँखों के सामने से निकलता है अँधेरा 
इन की ख़ामोशी पे गौर कीजियेगा 
इनको शिकवा फिर भी किसी से नहीं .............रचना राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'








धरती तो लुट ली इंसानियत ने,
अब आसमां लुटने निकले है 
परिंदे भी क्या करें बेचारे,
अब अन्धेंरे से भी डरते हैं .......रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'  








चले तो किस से चलें 


पांवों से चलने को सफ़र कहते है लोग 
आँखों से चलें तो डगर कहते हैं लोग 
श्वांसों से चल दिए तो अफसाना 
और मन से चल दिए तो मस्ताना .......रचना- राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 









Thursday, May 3, 2012

इन्सान तू क्या चाहता है रे

धरती तो लुट ली इंसानियत ने, 
अब आसमां लुटने निकले है 
परिंदे भी क्या करें बेचारे, 
अब अन्धेंरे से भी डरते हैं 
नदियों ने तो बहना छोड़ दिया 
घटाओं ने लहराना रोक दिया 
बहारों को क्या दोष दें हम 
जब इन्सान ने खुद यूँ ढाल दिया 
तूफान समुन्दर का भी डरने लगा है 
इन्सान के इस नजराने से 
मौत भी अब घबराने लगी है 
आज के इस विज्ञानं से 
सूरज की उगलती आग को 
इसने काबू कर लिया है 
चाँद की शीतल छा में 
इसने कदम रखलिया है 
उड़ते हुए बदल को ये 
निगाहों से निचोड़ने लगा है 
अपनी खुशियों के खातिर 
हिमालय को फोड़ने लगा है .......रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Tuesday, May 1, 2012

मजदूर


मजबूर हूँ मजदूरी से पेट का 
गुजरा अब हाथ से निकल रहा, 
अब हम चुप कब तक रहे, 
हृदय हमारा पिघल रहा, 
मेहनत करके नीव रखी देश की, 
अब सब बिफल रहा, 
अपने हकों के लिए चुना नेता, 
देखो हम को ही निगल रहा, 
डिग्री लेकर कोई इंजिनियर 
कुर्सी पर जो रोब जमता है
देखा जाय तो बिन मजदूर के 
वो रेस का लंगड़ा घोडा है, ..........रचना- राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'


Friday, March 23, 2012

मेरे देश का क्या होगा

मन भ्रमित हैं सब के अब
आँखें झील सी लहराती
इक बेचारी राजनीति से
लड़खड़ाते भारतवासी
राम रहीम का देश था ये
शांति ही इसकी लाठी थी
दूसरों की खुशियों पे कुर्वानी
ऐंसी मेरे देश की थी माटी .........रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Tuesday, March 13, 2012

पत्थर भी बोलते हैं


टूट कर आज हिमालय भी
हमको आवाज लगाता है 
मौन पड़े हैं वो जलप्रपात 
उपवन का जो मन बहलाता है 
कलरव चिड़ियों का 
भोर नहीं ले कर आता 
लाठी डंडे चीख पुकारें
रोज़ सवेरा अब ऐंसा आता
पहाड़ काट कर सड़कें बनती 
नदियाँ रोक कर बनते बांध
खुद को ही छल रहा धरा पर
अबोध बना ये इन्सान 
आसमान खामोश खड़ा है 
सूरज तक हैं इस पर हैरान 
तारे टूट पड़ते हैं धरती पर 
चाँद ठगा सा लगता वेजान  
हर मोड़ पर मनचले मिलते हैं 
पग पग पर जल जले निकलते हैं 
क्या होगा इस धरती का 
अब पत्थर भी ये बोलते हैं ............रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'  

मशरूम च्युं

मशरूम ( च्युं ) मशरूम प्राकृतिक रूप से उत्पन्न एक उपज है। पाहाडी क्षेत्रों में उगने वाले मशरूम।