Thursday, May 3, 2012

इन्सान तू क्या चाहता है रे

धरती तो लुट ली इंसानियत ने, 
अब आसमां लुटने निकले है 
परिंदे भी क्या करें बेचारे, 
अब अन्धेंरे से भी डरते हैं 
नदियों ने तो बहना छोड़ दिया 
घटाओं ने लहराना रोक दिया 
बहारों को क्या दोष दें हम 
जब इन्सान ने खुद यूँ ढाल दिया 
तूफान समुन्दर का भी डरने लगा है 
इन्सान के इस नजराने से 
मौत भी अब घबराने लगी है 
आज के इस विज्ञानं से 
सूरज की उगलती आग को 
इसने काबू कर लिया है 
चाँद की शीतल छा में 
इसने कदम रखलिया है 
उड़ते हुए बदल को ये 
निगाहों से निचोड़ने लगा है 
अपनी खुशियों के खातिर 
हिमालय को फोड़ने लगा है .......रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Tuesday, May 1, 2012

मजदूर


मजबूर हूँ मजदूरी से पेट का 
गुजरा अब हाथ से निकल रहा, 
अब हम चुप कब तक रहे, 
हृदय हमारा पिघल रहा, 
मेहनत करके नीव रखी देश की, 
अब सब बिफल रहा, 
अपने हकों के लिए चुना नेता, 
देखो हम को ही निगल रहा, 
डिग्री लेकर कोई इंजिनियर 
कुर्सी पर जो रोब जमता है
देखा जाय तो बिन मजदूर के 
वो रेस का लंगड़ा घोडा है, ..........रचना- राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'


Friday, March 23, 2012

मेरे देश का क्या होगा

मन भ्रमित हैं सब के अब
आँखें झील सी लहराती
इक बेचारी राजनीति से
लड़खड़ाते भारतवासी
राम रहीम का देश था ये
शांति ही इसकी लाठी थी
दूसरों की खुशियों पे कुर्वानी
ऐंसी मेरे देश की थी माटी .........रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Tuesday, March 13, 2012

पत्थर भी बोलते हैं


टूट कर आज हिमालय भी
हमको आवाज लगाता है 
मौन पड़े हैं वो जलप्रपात 
उपवन का जो मन बहलाता है 
कलरव चिड़ियों का 
भोर नहीं ले कर आता 
लाठी डंडे चीख पुकारें
रोज़ सवेरा अब ऐंसा आता
पहाड़ काट कर सड़कें बनती 
नदियाँ रोक कर बनते बांध
खुद को ही छल रहा धरा पर
अबोध बना ये इन्सान 
आसमान खामोश खड़ा है 
सूरज तक हैं इस पर हैरान 
तारे टूट पड़ते हैं धरती पर 
चाँद ठगा सा लगता वेजान  
हर मोड़ पर मनचले मिलते हैं 
पग पग पर जल जले निकलते हैं 
क्या होगा इस धरती का 
अब पत्थर भी ये बोलते हैं ............रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'  

Wednesday, February 22, 2012

तुम्हें चलना है

तुम्हें चलना है 
मेरे नन्हें शव्दों 
तुम्हें कागज पर उतर कर 
विचलित नहीं होना ! 
तुम्हें चलना है ! तुम्हें चलना है! 
तुम्हें चलना है ! तुम्हें चलना है ! 
तुम्हें ठहर कर कागज पर 
भार नहीं बनना है 
तुम्हें फैल कर कागज पर 
दाग नहीं बनना है 
तुम्हें रुक कर किसी की आँखों में 
पीड़ा का अहसहस नहीं भरना है 
तुम्हें रुक कर किसी तूफान में 
विचलित मन नहीं करना है 
तुम्हें चलना है ! तुम्हें चलना है! 
तुम्हें चलना है ! तुम्हें चलना है ! 
तुम्हें सुबह की रोशनी पर चलना 
तुम्हें साँझ की दुपहरी सा भी ढलना है 
तुम्हें ऊँचे पहाड़ सा बनना है 
तुम्हें दहकती आग सा जलना है 
परन्तु तुम्हें ये याद रखना है 
तुम्हें चलना है ! तुम्हें चलना है! 
तुम्हें चलना है ! तुम्हें चलना है ! ..........रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'


Friday, January 20, 2012

मतदाता

मत दाता तू कब समझेगा 
अंगूठे की आपनी ताकत को
सबसे प्यारा खेल है ये 
इस खेल की नजाकत को !
भूले विसरे आ जाते हैं 
झुण्ड बनाकर गली -गली में 
चहरे इनके खिल उठाते हैं 
फूल -फूल में कली-कली में !
नाम पे किसी के मत जाना 
झोली में किसी की क्या रखा है 
अंगूठे को अपने ये समझना 
कोई किसी का सगा नहीं है !
न पार्टी किसी की अपनी होती 
कुर्सी का ही खेल है सारा 
उस पर मिटते ये 'फिरौती' !
तन मन धन लूट के ये 
कुर्सी के गुणगान करते 
थे कभी तुम्हारी ही 'रज'
आज तुम्हारे भगवन बनते !! ............रचना राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Sunday, January 8, 2012

जलना हो तो सूरज सा जल के देखो


दूसरों की खुशियों पे
दुःख जताने वालों,
आसमां की तरह 
छत चाहाने वालों,
क्यों तिनके तिनके पे, 
इस कदर जलते हो,
जब जलना ही है तो 
सूरज सा जल के देखो l 
धरती की छाती को, 
फाड़ने वालों,
चाँद की सतह पर 
पताका गाड़ने वालों,
खुद के कदमो की 
जमीं को भी देखो,
इरादे हैं तुम्हारे नेक तो 
सूरज सा बन के देखो 
हर ले हर तम 
दूसरे के घर का 
चिराग ही है अगर बनना
तो ऐंसा बन के देखो 
जब जलना ही है तो 
सूरज सा जल के देखो !........रचना -राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 




मशरूम च्युं

मशरूम ( च्युं ) मशरूम प्राकृतिक रूप से उत्पन्न एक उपज है। पाहाडी क्षेत्रों में उगने वाले मशरूम।