Sunday, January 1, 2012





म्यर उत्तराखंड ग्रुप ने 25 दिसम्वर 2011 को अपने वार्षिकोत्सव के 


अवसर पर अपनी स्मारिका `बुरांश'- का लोकार्पण किया,




www.myoruttrakhand.com 

Monday, September 19, 2011

हिंदी की पुकार

जन जन से मिल कर 
शहर से निकल कर 
आती है सहमी सी आवाज 
की तुम मुझे बचालो! 
मुझे बचालो ! 
मुझे बचालो !
हर एक पहाड़ से टकराकर 
हर एक नदी से नाह कर 
धरती को चीर कर 
हवा सी घसीट कर 
आती है सहमी सी आवाज 
की तुम मुझे बचालो! 
मुझे बचालो ! 
मुझे बचालो !
माँ की ममता से 
किसान की क्षमता से 
व्यवसायी के व्यवसाय से 
युवा के उत्साह से 
थक हार कर 
आती है सहमी सी आवाज 
की तुम मुझे बचालो! 
मुझे बचालो ! 
मुझे बचालो !
सूर्य की किरण से 
धरती के रज-कण से 
नेताओं के आवाहन से 
इन्सान के संज्ञान से 
आती है सहमी सी आवाज 
की तुम मुझे बचालो! 
मुझे बचालो ! 
मुझे बचालो !
विज्ञानं के चमत्कार से 
ज्योतिष के उपकार से 
दानी के दान से 
विद्वान के ज्ञान से 
थक हार कर 
आती है सहमी सी आवाज 
की तुम मुझे बचालो! 
मुझे बचालो ! 
मुझे बचालो !........राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

Saturday, September 17, 2011

पौधे को उगने दो


यह नन्हा कोमल पौधा है 
इस पौधे को उगने दो
अपनी भेड़ें रोक भी लो 
ओं राजनीति के चरवाहों 
कितने उर्वर विखरे हैं 
इस पौधे को उगाने में 
भूख प्यास कि दी कुर्वानी 
इसे राह दिखने में 
तब जा के एक प्यारा सा 
ये आंचल लहराया 
बुझे हुए सब चेहरों को
एक मुस्कराहट दे पाया 
यह नन्हा कोमल पौधा है 
इस पौधे को उगने दो
चुनो न इसकी पत्तियां 
सद-भावना के तार लगाओ 
मिल कर दो सहारा इसको 
आपस में सब प्यार जगाओ ............राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

नोट: यह रचना मैंने उत्तराखंड राज्य को देखते हुए लिखी थी 

Tuesday, August 2, 2011

ये आँखे तो दर्पण हैं

ये आँखे तो दर्पण हैं 
अधर पर जो न आ पाये
इन पर हर रोज़ उभरता है 
मन का मौसम कैंसा भी हो 
इन पर सब कुछ दिखता है 
ये आँखे तो .........ये आँखे तो ....
ये आँखे तो दर्पण हैं !
खुशियाँ भी फुहवारे बन कर 
गम आते हैं लेकर रिमझिम 
अक्स इन पर ऐंसे उभरते 
जैंसे मानो हो प्रतिबिंम्ब 
ये आँखे तो ......... ये आँखे तो ........
ये आँखे तो दर्पण हैं !.......रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Wednesday, July 27, 2011

फरियाद करूँ तो किससे


ये घटा तू बता मैं फरियाद करूँ तो किस से 
अपनों ने जब यूँ दर-दर भटकाया मुझको ,
तब फरियाद करूँ तो किस से !
मिटटी का बना खिलौना है,
मेरा हर सुख-दुःख तो यूँ ,
सब तो मुझको छोड़ चले,
आपना किसको मैं कह दूँ ,
ये घटा तू बता!  
किससे अब फरियाद करूँ तो किस से 
ये घटा तू बता मैं फरियाद करूँ तो किस से .........रचना-राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

Thursday, June 30, 2011

कही मैं दीपक न बन जाऊं

मैं तो अकेले जलता हूँ,
सारी महफ़िल देख रही है,
मैं खुद से ही डरता हूँ,
कहीं मैं दीपक न बन जाऊं !
मेरे जलन की रोशनी,
उनको खार सी चुभती है,
जख्म मुझे मिले मरघट में मैं हूँ,
भला उनकी आँख क्यों दुखती है,
मैं अपनी यादो में आपने,
अरमा डुबो कर जलाता हूँ,
भला कोई हृदय क्यों आकर,
मेरे मरघट पे मंडराता है !
मुझे डर है लोग इल्जाम देंगे,
कहीं मैं दीपक न बन जाऊं !........... रचना राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'












Saturday, June 11, 2011

हम इन्सान हैं


हम इन्सान हैं, इन्सान को इन्सान बनायें,
पड़े पत्थर राह में कौम के, उनको भी हटायें,
हम इन्सान हैं, इन्सान को इन्सान बनायें !
जमी के टुकड़े -टुकड़े करके,
हमने इसको बांटा है
छाया के लिए पेड़ लगाया,
उसमे उगता काँटा है !
हम इन्सान हैं, इन्सान को इन्सान बनायें,
अब तक बने हैं कितने खंडर 
सभी को ये दिखायेंगे !
हम इन्सान हैं, इन्सान को इन्सान बनायें,
कितनी सांसों ने कौम को विस्तार बनाया,
विज्ञानं ने कब इन्सान को जीना सिखाया,
कितनी सरहदों ने लहू से प्यास बुझाई 
इन्सान को इन्सान कब देता है दिखाई
हम इन्सान हैं, इन्सान को इन्सान बनायें,
पड़े पत्थर राह में कौम के, उनको भी हटायें, रचना -राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

मशरूम च्युं

मशरूम ( च्युं ) मशरूम प्राकृतिक रूप से उत्पन्न एक उपज है। पाहाडी क्षेत्रों में उगने वाले मशरूम।