Wednesday, June 8, 2011

तुम दूर हुए तो याद पास आयी


तुम दूर हुए तो याद पास आयी,
क्या यही तोफा है दोस्ती का ?
सोचा न था तक़दीर एक दिन,
चल कर ये दिन भी दिखलाएगी,
हम तुम दूर होंगे याद पास आएगी !
तुम दूर हुए तो याद पास आयी,
क्या यही तोफा है दोस्ती का ?
वो तूफान हमने न कभी देखा था,
अरमानो की कश्ती को जो खेता है,
दुनिया का सायद यही तकाजा है,
यादें मिल जाती हैं यार विछुड़ जाता है,
तुम दूर हुए तो याद पास आयी,
क्या यही तोफा है दोस्ती का ?
तुम्हारे  यूँ   चले   जाने   से,
यादें   जो   आ   रही    हैं ,
दुवायें होंगी तुम्हारी ये मगर,
हमें  तो  ये  जला  रही  हैं !.....रचना --राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

मैंने कभी सोचा ही न था

मैंने कभी सोचा ही न था 
मुड  कर  के  देखूं   किसे,
हर तरफ मुस्कराती सुबह है,
कदम पड़ते हैं जिस गली पे,
मुझ को लगाती क्यों अजनवी है!
सब कहते है सावन जिसे,
मैं पतझड़ नाम देता हूँ,
भूल जाते एक बसंत पर,
उन भैरों को पैगाम देता हूँ !
जिस राह पर चल कर आया हूँ,
राहगीर  उसी के    ठुकराते हैं,
जिसको मन से पूजा मैंने,
वे आकर दीप बुझाते हैं !.....रचना-.राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

लेख

लिख रहा हूँ कुछ मैं,
ध्यान फिर भी हैं,
हर लेख यूँ ही,
चर्चित नहीं हुआ करता
महफिल में हजारों
मिलते हैं हम से
यूँ तो हर कोई आपना
परिचित नहीं हुआ करता .........रचना राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

मैंने तुम्हें किस कदर समेटता हूँ

मैंने तुम्हें किस कदर समेटता हूँ,
तुम! छोड़ कर मुझे बिखर ना जाना,
दुनिया के लिए धन दौलत सब कुछ,
मैं एक तुम्हारा हूँ परवाना !
मैंने तुम्हें किस कदर समेटता हूँ,
तुम! छोड़ कर मुझको बिखर ना जाना,
साडी खुशियाँ ठुकरा दी हैं,
आपनो का भी गैर हुआ,
सब के तीर सहे हृदय ने,
तब जाके ये शहर ! .......रचना राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Tuesday, June 7, 2011

मेरा साथी


मेरा साथी वो सपना हैं,
तुम्हे लेकर जो आता है,
देख अधर की हंसी तुम्हारी,
मन भैरा सा गता है !
तुमने मुड़कर देखा ही कब,
फिर भी तुमको मित बनाऊं .
सपना भी ये कुछ पल का है,
इसको ही मैं गीत सुनाऊं !
जाने कौन पुकार सुने,
छोटे से इस वेबस मन की,
यहाँ विकता हैं ' दिल ' पैंसों में,
कौन सुने फिर मुझ निर्धन की !.....रचना ...राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'   

Sunday, June 5, 2011

मेरे प्यारे अक्षर


मैंने तुम्हें किस कदर समेटता हूँ,
तुम! छोड़ कर मुझे बिखर ना जाना,
दुनिया के लिए धन दौलत सब कुछ,
मैं एक तुम्हारा हूँ परवाना !
मैंने तुम्हें किस कदर समेटता हूँ,
तुम! छोड़ कर मुझको बिखर ना जाना,
सारी खुशियाँ ठुकरा दी हैं,
आपनो का भी गैर हुआ,
सब के तीर सहे हृदय ने,
तब जाके ये शहर!  .......रचना राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

यादों का सफर


घन छाये यादों के मेरे ऊपर,
अश्क आज पानी बरसते हैं,
ढल चुकी थी निशा हृदय में,
लौट कर फिर क्यों रवि आते हैं!
कितनी मधुर अभिलाषाएं लेकर,
मधुप     यूँ        मंडराते    हैं,
कुछ पल का सहारा देकर पुष्प,
क्यों सपनों को तोड़ जातें हैं!
हैं भटकते हम मुसाफिर बन कर,
जीवन के इस वीराने सफर में,
यादें रहती हैं एक नज़ारा बन कर 
जीवन के टूटे हुए इस दर्पण में !........रचना राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

मशरूम च्युं

मशरूम ( च्युं ) मशरूम प्राकृतिक रूप से उत्पन्न एक उपज है। पाहाडी क्षेत्रों में उगने वाले मशरूम।